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सं.छा. सुखास्वादकस्य श्रमणस्य साताकुलस्य निकामशायिनः।
. उत्सोलनाप्रधाविनः, दुर्लभा सुगतिस्तादृशस्य ।।२६।। शब्दार्थ - (सुहसायगस्स) शब्दादि विषयों के सुख का स्वाद लेनेवाले (सायाउलगस्स) भावि-सुखों के लिए आकुल (निगामसाइस्स) खा-पीकर रात दिन पडे रहनेवाले (उच्छोलणापहोअस्स) विना कारण हाथ, पैर, मुख, दांत आदि अंगोपांगों को धोकर साफ रखनेवाले (तारिसगस्स) इस प्रकार जिनाज्ञा लोपी (समणस्स) साधुको (सुगइ) सिद्धि गति (दुल्लहा) मिलना कठिन है।
जो साधु-साध्वी शब्दादि विषयों के सुखास्वाद में लगे हुए हैं, भावि सुखों के वास्ते आकुल हो रहे हैं, खा-पीकर रात-दिन पड़े रहते या फिजूल बातें करके अपने अमूल्य समय को बरबाद कर रहे हैं और बिना कारण शोभा के निमित्त हाथ-पैर आदि अंगोपांगों को धोकर साफ रखते हैं उनको सिद्धिगति मिलना अत्यन्त कठिन है। "सुगति सुलभ"
तवोगुणपहाणस्स उज्जुमइ-खंति-संजमरयस्स। - परीसहे जिणंतस्स सुलहा सुगइ तारिसगस्स||२७|| सं.छा.ः तपोगुणप्रधानस्य ऋजुमतेः क्षान्तिसंयमरतस्य। . .
परीषहान् जयतः सुलभा सुगतिस्तादृशस्य ।।२७।। शब्दार्थ - (तवोगुणप्पहाणस्स) छट्ट, अट्ठम आदि तपस्याओं के गुण से श्रेष्ठ .(उज्जुमइ) मोक्षमार्ग में बुद्धि को लगाने वाले (खंतिसंजमरयस्स) शांति और संयम क्रिया में रक्त (परीसहे) बाईस परिषहों को (जिणंतस्स) जीतनेवाले (तारिसगस्स) इस प्रकार जिनाज्ञा के पालन करनेवाले साधु को (सुगइ) सिद्धिगति (सुलहा) मिलना सहज है। ... जो साधु-साध्वी नाना प्रकार की तपस्याओं को करने में, निष्कपट शान्तिभाव से संयम क्रिया पालन करने में, बाईस परिषहों को जीतने में और जिनेश्वरों की आज्ञा के अनुसार चलने में कटिबद्ध हैं उनको सदा शाश्वत सिद्ध अवस्था मिलना सहज है।
पच्छावि ते पयाया खिप्पं गच्छंति अमरभवणाई।
जेसिं पिओ तवो संजमो अ, खंती अ बंभचेरं च ||२८|| सं.छा.: पश्चादपि ते प्रयाताः क्षिप्रं गच्छन्त्यमरभवनानि।
येषां प्रियं तपः संयमश्च क्षान्तिश्च ब्रह्मचर्यं च।।२८।। शब्दार्थ - (जेसिं) जिन पुरुषों को (तवो) बारह प्रकार के तप (अ) और (संजमो) सतरह .. प्रकार का संयम (अ) तथा (खंति) क्षमा (च) और (बंभचेरं) ब्रह्मचर्य (पिओ) प्रिय है
(ते) वे (पच्छा वे) अन्तिम अवस्था में भी (पयाया) संयम-मार्ग में चलते हुए (अमरभवणाइं) देवविमानों को (खिप्पं) जल्दी से (गच्छंति) पाते हैं।
श्री दशवैकालिक सूत्रम् - 51