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सभा में, अथवा (सुत्ते वा) सोते हुए, अथवा (जागरमाणे) जागते हुए (वा) दूसरी और भी कोई अवस्था में (से) वायुकायिक जीवों की जयणा इस प्रकार करें कि (सिएण वा) सफेद चामरों से (विहुणेण वा) बीजना से (तालियंटेण वा) ताल पत्र से (पत्तेण वा) कमल आदि के पत्तों से (पत्तभंगेण वा) कमल आदि के पत्र समूह से (साहाए वा) वृक्ष की डाली से (साहाभंगेण वा) डालियों के समूह से (पिहुणेण वा) मयूर पीछ से (पिहुणहत्थेण वा) मोर पीछ की पुंजनी से (चेलेण वा) वस्त्र से (चेलकन्नेण वा) वस्त्र के छेड़ा से (हत्थेण वा) हाथों से (मुहेण वा) मुख से (अप्पणो वा कायं) खुद के शरीर को (बाहिरं वा वि पुग्गलं) गर्म जल, दूध आदि के उष्ण पुद्गलों को भी (न फुमेज्जा) फूंक देवे नहीं (न वीएज्जा) हवा देवे नहीं (अन्न) दूसरों के पास (न फुमाविज्जा) फूंक दिलवाएं नहीं (न वीएज्जा) हवा दिलवाएं नहीं (अन्न) दूसरों को (फुमंतं वा) फूंक देते हुए अथवा (वीयंत) हवा डालते हुए (वा) और तरह से भी वायुकाय का विनाश करते हुए (न समणुजाणेज्जा) अच्छा समझे नहीं ऐसा भगवान् ने कहा; अतएव मैं (जावज्जीवाए) जीवन पर्यन्त (तिविहं) कृत, कारित, अनुमोदित रूप वायुकायिक त्रिविध-हिंसा को (मणेणं) मन (वायाए) वचन (काएणं) काया रूप (तिविहेण) तीन योग से (न करेमि) नहीं करूं, (न कारवेमि) महीं कराऊ, (करंत) करते हुए (अन्नं पि) दूसरों को भी (न समणुजाणामि) अच्छा नहीं समझू (भंते!) हे भगवन्! (तस्स) भूतकाल में की गयी हिंसा की (पडिक्कमामि) प्रतिक्रमण रूप आलोयणा करता हूँ (निंदामि) आत्म-साक्षी से निंदा करता हूँ (गरिहामि) गुरु-साक्षी से गर्दा करता हूँ (अप्पाणं) वायुकाय की हिंसा • करनेवाली आत्मा का (वीसिरामि) त्याग करता हूँ। वनस्पतिकाय की रक्षा :
से भिक्खू वा भिक्खूणी वा संजयविरयपडिहयपच्चक्खाय-पावकम्मे, दिआ वा, राओ वा, एगओ वा, परिसागओ वा, सुत्ते वा, जागरंमाणे वा, से बीएसु वा, बीअपईटेन्सु वा कढेसु वा, रूढपईठेसु वा, जारसु वा, जायपईटेसु वा, हरिएसु वा, हरिअपइठेसु. वा, छिन्नेसु वा, छिन्नपईटेन्सु वा, सचित्तेसु वा, सचित्तकोलपडिनिस्सिएन्सु वा, न गच्छेज्जा, न चिठेज्जा, न निसीएज्जा, न तुअर्टेज्जा, अन्नं न गच्छावेज्जा, न चिट्ठावेज्जा, न निसीआवेज्जा, न तुअट्टावेज्जा, अन्नं गच्छंतं वा, चिट्ठतं वा, निसीयंतं वा, तुयद्वंतं वा, न समणुजाणामि, जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेमि, न कारवेमि, करंतं पि अन्नं न समणुजाणामि, तस्स भंते! पडिकमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि ||५|| (सू.१४)
. श्री दशवैकालिक सूत्रम् - 39