Book Title: Samyag Darshan Part 02
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[सम्यग्दर्शन : भाग-2
में ही तू लीन होता है। यदि स्वभाव के अतीन्द्रियसुख की रुचि से हाँ करके उन विषय-सुख की ना करे तो वह 'हाँ' और 'ना' दोनों यथार्थ टिकेगी और आगे जाने पर पूर्ण अतीन्द्रिय केवलसुख प्रगट होगा।
इस प्रकार आत्मार्थी को पहले से ही स्वलक्ष्य से इन्द्रिय की ओर के झुकाव में से आदरबुद्धि मिट जानी चाहिए और अतीन्द्रिय सुख की परम आदरपूर्वक श्रद्धा होनी चाहिए, यही अतीन्द्रिय सुख प्रगट होने का उपाय है।
आत्मकल्याण की अपूर्व बात आत्मकल्याण की बात अपूर्व है; झट न समझ में आये तो इसमें अरुचि या उकताहट नहीं लाना परन्तु विशेष अभ्यास करना। 'यह मेरे आत्मा की अपूर्व बात है', यह समझने से ही कल्याण है। ऐसे अन्तर में इसकी महिमा लाकर रुचि से श्रवण-मनन करना, सब आत्मा में यह समझने की ताकत है। मैं पुरुष हूँ, मैं स्त्री हँ, मैं वृद्ध हूँ, मैं बालक हूँ - ऐसी शरीरबुद्धि को छोड़कर अन्तर में ऐसा लक्ष्य करना कि मैं आत्मा हूँ, शरीर से भिन्न ज्ञानस्वरूप हूँ, प्रत्येक आत्मा भगवान है - ज्ञानस्वरूपी है, उसमें पूरा-पूरा समझने की ताकत भरी है। इसलिए मुझे समझ में नहीं आता' - ऐसी शल्य निकालकर 'मुझे सब समझ में आता है' - ऐसी मेरी ताकत है और यह समझने से ही मेरा हित है – ऐसा दृढ़ निर्णय करके समझने का प्रयत्न करना। रुचिपूर्वक प्रयत्न करे, उसे न समझ में आये, ऐसा नहीं होता। इसमें बुद्धि के उघाड़ की बहुत जरूरत नहीं परन्तु रुचि की जरूरत है।
- भेदविज्ञानसार, पूज्य गुरुदेवश्री
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