Book Title: Samyag Darshan Part 02
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग-2]
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व्यवहारस्वाध्याय है, सो यह व्यवहार, निश्चय के लिये हो तो वह व्यवहार भी सत्यार्थ है और बिना निश्चय के व्यवहार सारहीन (थोथा) है।
(स्वामी कार्तिकेयानुप्रेक्षा, गाथा 463-64)
पर
दुनिया में महिमावन्त कौन माहात्म्य करने योग्य दुनिया में कोई हो तो वह सर्वज्ञ प्रणीत धर्म और धर्मात्मा ही है। वर्तमान में वे धर्मात्मा भले कदाचित निर्धन स्थिति में हो परन्तु अल्प काल में इस जगत को वन्द्य तीन लोक के नाथ होनेवाले हैं। लौकिक में तो पुण्य से बड़ा, वह बड़ा कहलाता है। वकील, डॉक्टर इत्यादि दिन में कितने रुपये कमाते हैं, इस आधार से उनकी महिमा होती है परन्तु खानदान कैसा है, आत्मज्ञान - श्रद्धा कैसी है, इस आधार पर लोग नहीं देखते। बाहर में देखते हैं। परन्तु धर्म में तो धर्मात्मा को बाह्य सामग्री कैसी है, वह नहीं दिखता परन्तु स्वतन्त्र आत्मगुण की समृद्धि कैसी है, वह दिखता है। जिनमें सम्यग्दर्शनादि प्रगट हुए हैं, वे जीव इस जगत् में महिमावन्त हैं।
(पूज्य गुरुदेवश्री कानजीस्वामी)
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