Book Title: Samyag Darshan Part 02
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[सम्यग्दर्शन : भाग-2
शुद्धात्म-प्राप्ति की दुर्लभता
अनन्त काल से संसार में परिभ्रमण करते हुए जीवों को शुद्ध आत्मा की समझ दुर्लभ है, यह बताते हुए श्री कुन्दकुन्द आचार्यदेव समयसार की चौथी गाथा में कहते हैं कि -
(1) काम-भोग-बन्धन की कथा को समस्त जीवों को सुनने में आ गयी है परन्तु...., ___ (2) भिन्न आत्मा के एकत्व की बात जीव ने कभी सुनी ही नहीं है।
देखो! इस कथन से निम्न न्याय निकलते हैं :
(1) निगोद में ऐसे अनन्त जीव हैं कि जिन्होंने कभी मनुष्यभव धारण ही नहीं किया है, जो कभी निगोद में से निकले ही नहीं हैं, जिन्हें कभी श्रवणेन्द्रिय प्राप्त ही नहीं हुई है, तो उन्होंने काम-भोग-बन्ध की कथा किस प्रकार सुनी?
समाधान यह है कि उन जीवों ने शब्द भले ही नहीं सुने हों परन्तु काम-भोग की कथा के श्रवण का जो कार्य है, उसे तो वे कर ही रहे हैं। शब्द न सुनने पर भी उसके भाव अनुसार विपरीत प्रवर्तन तो वे कर ही रहे हैं। काम-भोग की कथा सुननेवाले अज्ञानी जीव जिस विकार का अनुभव कर रहे हैं और कह रहे हैं, वैसा वे निगोद के जीव, कथा सुने बिना ही कर रहे हैं; इसलिए उन्होंने भी काम-भोग-बन्धन की कथा सुनी है - ऐसा आचार्यदेव ने कहा है। एक तो शुद्धात्मा के भान बिना अनन्त बार नौवें ग्रैवेयक के
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