Book Title: Samyag Darshan Part 02
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[सम्यग्दर्शन : भाग-2
बात है। जगत् के पदार्थों को जान-जानकर क्या करना? यही कि अपने चैतन्यस्वभाव की शरण लेना, उसका आश्रय करना।
• जगत् में छह प्रकार के द्रव्य हैं; • उनमें एक जीव, पाँच अजीव हैं; • जीव अनन्त हैं, प्रत्येक जीव ज्ञानस्वरूप है; • उसमें अपना आत्मा भिन्न, ज्ञानस्वरूप है।
इस प्रकार अपनी आत्मा को जगत् से भिन्न निश्चित करना। कैसा निश्चित करना? विशुद्ध चैतन्यस्वभावरूप निश्चित करना। ___जीव के अस्तित्व में दो पहलु : द्रव्य और पर्याय; उसमें द्रव्य तो शुद्ध एक रूप है, पर्याय में शुद्धता-अशुद्धता दोनों होते हैं। प्रथम शुद्ध द्रव्यस्वभाव का निर्णय कराया कि विशुद्ध चैतन्यस्वरूप अपने आत्मा का निर्णय करना।शुद्ध द्रव्यस्वरूप का निर्णय कराने के पश्चात् पर्याय में जो विकार है, उसका भी ज्ञान कराते हैं। शुद्ध चैतन्यस्वरूप तो अनारोपित-असली स्वभाव है और विकार तो आरोपित विभाव है। शुद्धद्रव्य का निर्णय किये बिना आरोपित विकार का ज्ञान नहीं होता। ___ यदि शुद्धस्वरूप के ज्ञान बिना, अकेले विकार को जानने जाए तो वह विकार को ही निज/असली स्वरूप मान लेगा; इसलिए सच्चा ज्ञान नहीं होगा। जिस प्रकार निज जीव को जाने बिना छह द्रव्य ज्ञात नहीं होते; जैसे, उपादान को जाने बिना निमित्त का यथार्थ ज्ञान नहीं होता; जैसे, निश्चय के बिना वास्तविक व्यवहार नहीं होता; इसी प्रकार शुद्धस्वरूप को जाने बिना अकेले विकार का यथार्थ ज्ञान नहीं होता – यह महा सिद्धान्त है। जिस प्रकार
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