Book Title: Samyag Darshan Part 02
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[सम्यग्दर्शन : भाग-2
बहु पुण्य-पुंज प्रसंग से शुभदेह मानव का मिला। तो भी अरे! भवचक्र का, फेरा न एक कभी टला॥
यह मानवदेह तो जड़ है परन्तु मानवपने में जीव, सम्यग्दर्शन -ज्ञान-चारित्ररूप पवित्रभाव प्रगट कर सकता है; इसलिए देह को भी उपचार से 'शुभदेह' कहा जाता है। अनन्त काल में यह मानवदेह प्राप्त हुआ है, यदि इसमें आत्मा की सच्ची समझ प्रगट करे तो इसे उत्तम कहा जाता है; इसके अतिरिक्त लक्ष्मी के ढेर अथवा बड़े अधिकार प्राप्त होने से मानवदेह की उत्तमता ज्ञानियों ने नहीं कही है; इसलिए कहा है कि -
लक्ष्मी बढ़ी अधिकार भी, पर बढ़ गया क्या बोलिये। परिवार और कुटुम्ब है क्या? वृद्धि नय पर तोलिये॥ संसार का बढ़ना अरे! नरदेह की यह हार है। नहिं एक क्षण तुझको अरे! इसका विवेक विचार है॥
बाहर में लक्ष्मी इत्यादि का संयोग बढ़ा, इससे आत्मा में क्या बढ़ा? – यह तो विचार करो। किसी बाह्य संयोग से आत्मा की महिमा नहीं है। यदि जीव, मानवदेह प्राप्त करके शरीर से भिन्न आत्मा की पहचान नहीं करे तो इस मनुष्यदेह की कोड़ी की भी कीमत नहीं है। यह जीव, आत्मा के भान बिना मात्र बाह्य संयोग की मिठास करके, संसार बढ़ाकर मनुष्यभव हार जाता है।
जो आत्मा की अन्तर की चीज होती है, वह आत्मा से भिन्न नहीं हो सकती। शरीर, पैसा, स्त्री, पुत्र इत्यादि वस्तुएँ आत्मा की नहीं हैं, इसलिए वे वस्तुएँ परभव में आत्मा के साथ नहीं जातीं। लाखों रुपये प्राप्त होने से जीव की महिमा नहीं है और रुपये प्राप्त
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