Book Title: Samyag Darshan Part 02
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग-2]
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सम्बन्ध में तो भूल का अभाव किया, किन्तु आत्मा का स्वभाव क्या है ? यह नहीं जाना; इसलिए निश्चय सम्बन्धी भूल का कभी अभाव नहीं किया। अज्ञानी जीव, पुण्य को आत्मा का स्वरूप माने तो वह भी आत्मा के विषय में भ्रान्ति है। जीव ने अनन्त काल में दूसरा सब किया है परन्तु आत्मा का स्वभाव क्या है? - इस विषय में भ्रान्ति का अभाव कभी नहीं किया; इसलिए अपने विषय में ही भ्रान्ति रह गयी है।
स्वयं अर्थात् कौन ? देखो, अपने को विकारवाला माना - यह भी भ्रान्ति है क्योंकि आत्मा, क्षणिक विकार जितना नहीं है; उसका स्वभाव तो विकाररहित है, उस स्वभाव के विषय में भ्रान्ति रह गयी है। जीव ने अनन्त बार शुभभाव किया है किन्तु भ्रान्तिरहित होकर शुद्धात्मा को कभी नहीं जाना है। ___ यह एक अवाच्य अद्भुत विचार का स्थल है। वाणी से नहीं कहा जा सके - ऐसा अद्भुत विचार का यह स्थल है। यहाँ आत्मस्वभाव के विचार की अपूर्वता बतलायी जा रही है। ऐसा क्या बाकी रह गया कि अनन्त-अनन्त काल व्यतीत होने पर भी भ्रान्ति का अभाव नहीं हुआ? अनन्त काल में त्याग-व्रत इत्यादि किया, परन्तु आत्मस्वभाव की विचारधारा का स्थल बाकी रह गया। अपने को अपने विषय में क्या भ्रान्ति रह गयी? – यह एक अद्भुत विचार का स्थल है।
भाई! जीव, दूसरे सब विचारों में तो चतुराई करता है परन्तु आत्मा का यथार्थ विचार कभी नहीं करता। पहले आत्मस्वभाव की बात करके फिर उसके निमित्त भी बतलायेंगे और अनन्त
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