Book Title: Samyag Darshan Part 02
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[सम्यग्दर्शन : भाग-2
हो गया है। जिस प्रकार छोटे हीरे की कीमत लाखों रुपये होती है, उसे जौहरी ही जानता है; इसी प्रकार आत्मा का चरित्र अन्तरदृष्टि से ही पहचाना जाता है।
धर्मी आत्मा का चरित्र क्या? वह शरीर की दशा में अथवा वस्त्र में नहीं है। आहारशुद्धि में अथवा वस्त्र के त्याग में भी चारित्र नहीं है, वह सब तो अज्ञानी को भी होता है। सत्पुरुष के अन्तर में क्या भेद पड़ गया है ? - यह जाने बिना उनके चरित्र का ज्ञान नहीं होता। सत्पुरुष का आन्तरिक चारित्र क्या? 'अमुक गाँव में रहते थे और जवाहरात का व्यापार करते थे, जिज्ञासुओं को पत्र लिखते थे अथवा उपदेश देते थे' - क्या इसमें सत्पुरुष का चरित्र है ? यह सब तो बाह्य वस्तुएँ हैं, इनमें सत्पुरुष का चरित्र नहीं है परन्तु अन्तर के स्वभाव को जानकर वहाँ स्थिर हुआ है और रागादिभावों की रुचि मिट गयी है, यही सत्पुरुषों का चरित्र है। उसे पहचानने पर ही उसका वास्तविक स्मरण होता है।
और कहते हैं कि 'सत्पुरुषों के लक्षणों का चिन्तवन करना''ऐसी भाषा थी और ऐसा शरीर था' - इस प्रकार शरीर के लक्षणों से सत्पुरुष नहीं पहचाने जाते । अन्तरस्वभाव की श्रद्धाज्ञान और रमणता ही सत्पुरुष का लक्षण है। बाहर में त्याग हुआ अथवा शुभराग हुआ, वह सत्पुरुष का वास्तविक लक्षण नहीं है। जो शरीर दिखता है, वह देव-गुरु नहीं है, वह तो जड़ है; देव अथवा गुरु तो आत्मा हैं और अन्तर में श्रद्धा-ज्ञान-चारित्रस्वरूप, वही उसका लक्षण है; उस लक्षण द्वारा सत्पुरुष को पहचानने से अपना आत्मा भी वैसा होता है।
लक्षण उसे कहते हैं कि जिसके द्वारा लक्ष्य की पहचान होती
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