Book Title: Samyag Darshan Part 02
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai

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Page 175
________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-2] [159 आत्मार्थी जीव का उत्साह और आत्मलगन ___ (१) आत्मार्थी जीव की धगश कैसी होती है ? उसकी आत्मलगन कैसी होती है? और अपना सम्यक्त्वरूपी कार्य साधने के लिये उसका उत्साह और उद्यम कैसा होता है? – इन सबका सुन्दर और प्रेरणादायी विवेचन पूज्य गुरुदेवश्री कानजीस्वामी ने इस प्रवचन में किया है। जीवादि छह द्रव्य और पाँच अस्तिकायों का वर्णन करके, उपसंहार में उनके ज्ञान का फल दर्शाते हुए आचार्यदेव कहते हैं किइस रीत प्रवचनसाररूप पंचास्तिसंग्रह जानकर। जो जीव छोड़े राग-द्वेष, पाये सकल दुःखमोक्ष रे॥ इस प्रकार प्रवचन के सारभूत पञ्चास्तिकायसंग्रह को जानकर जो राग-द्वेष को छोड़ता है, वह दुःख से परिमुक्त होता है। प्रवचन अर्थात् भगवान सर्वज्ञदेव का उपदेश; उसमें कालसहित पाँच अस्तिकाय अर्थात् जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल - ये छह द्रव्य कहे गये हैं। भगवान सर्वज्ञदेव के प्रवचन में इन छह द्रव्यों का ही सब विस्तार है; इनसे अन्य कुछ नहीं कहा गया है। जड़-चेतन, सुख-दु:ख, पुण्य-पाप, बन्ध-मोक्ष - यह सब छह द्रव्यों का ही विस्तार है; इसलिए छह द्रव्य ही उस प्रवचन का सार है। जो कालसहित पञ्चास्तिकाय को अर्थात् छह द्रव्यों Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.

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