Book Title: Samyag Darshan Part 02
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग-2]
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जीव सो रहा हो या खा रहा हो, परन्तु साथ ही साथ उसे लोलुपता का भाव तो पड़ा ही है; इसी प्रकार धर्म की रुचिवाले को नींद में भी पर के प्रति उदासीनता का भाव मिटता नहीं है। धर्म की रुचिवाला उदासीनता के क्रम में भङ्ग नहीं पड़ने देता; खाना-पीना अथवा व्यापार इत्यादि का राग वर्तता होने पर भी अन्तर की रुचि में उसके प्रति उदासीनता एकक्षण के लिए भी नहीं मिटती है।
अब, भ्रान्ति टालने के निमित्त की पहचान कराते हुए कहते हैं कि 'सत्पुरुष की भक्ति के प्रति लीन होना।' पहले, सत्पुरुष कौन है ? - यह पहचानना चाहिए। देखो, पहचान की जिम्मेदारी स्वयं की है। सत्पुरुष किसे कहा जाता है ? यह जानने का स्वयं का भाव है। अरे! दो पैसे का घड़ा लेने जाएँ तो भी ठोकबजाकर परीक्षा करते हैं तो अनन्त काल की भ्रान्ति मिटाकर आत्मा का कल्याण प्रगट करने के लिए सत्पुरुष की परीक्षा करके पहचानना तो चाहिए। सत् अर्थात् आत्मस्वभाव; जिन्हें आत्मस्वभाव की पहचान हुई है, वे सत्पुरुष हैं । संसार के प्रति निरन्तर उदास होना और सत्पुरुष की भक्ति के प्रति लीन होना, यह दो बातें कही गयी हैं। ____ अब, विशेष कहते हैं – 'सत्पुरुषों के चरित्रों का स्मरण करना।' पहले जिसका ज्ञान किया हो, उसका स्मरण किया जा सकता है। सत्पुरुष का चरित्र किसे कहा जाता है ? इसके ज्ञान बिना उनका स्मरण किस प्रकार किया जा सकता है ? सत्पुरुष का चरित्र कहाँ रहता होगा? किसी बाहर की क्रिया में अथवा शुभाशुभराग में सत्पुरुषों का चरित्र नहीं है। बाहर में परिवर्तन न दिखने पर भी धर्मी की अन्तरदशा में रुचि का झुकाव स्वभावसन्मुख
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