Book Title: Samyag Darshan Part 02
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
View full book text
________________
www.vitragvani.com
सम्यग्दर्शन : भाग-2 ]
[ 151
काल से आत्मा की भ्रान्ति रह गयी है - ऐसा पहचानना और फिर ऊपर कहे अनुसार, पात्र होकर सत्पुरुष को पहचानना; इससे अवश्य आत्मा की भ्रान्ति मिट जाएगी ।
ज्ञानी यह नहीं कहते कि तू हमारा आश्रय करके रुक जा ! ज्ञानी के हृदय का रहस्य तो यह है कि तू अपने आत्मा को सिद्ध समान परिपूर्ण स्वभावरूप पहचानकर उसका आश्रय कर ! सभी धर्मात्माओं ने यही सम्मत किया है और यही सम्मत करने योग्य है अर्थात् उत्साहपूर्वक माननेयोग्य है।
'यह ज्ञानियों ने हृदय में रखा हुआ निर्वाण के लिए मान्य रखने योग्य, पुनः पुनः चिन्तवन योग्य, प्रति क्षणप्रति समय लीन होने योग्य परम रहस्य है और यही सर्व शास्त्रों का, सर्व सन्तों के हृदय का, ईश्वर के घर का मर्म पाने का महामार्ग है।' देखो तो सही, कितनी दृढ़तापूर्वक बात की है! धर्मी जीवों ने जो मान्य किया है, वही मान्य रखना, यह परम रहस्य है। धर्मी जीवों ने क्या मान्य किया; किसका ग्रहण और किसका त्याग किया ? यह पहचाने बिना स्वयं उसकी श्रद्धा किस प्रकार करेगा और उसका चिन्तवन भी किस प्रकार करेगा ?
ज्ञानियों को भलीभाँति पहचानकर, उनके मानने अनुसार आत्मा के वीतरागी स्वभाव का आश्रय करना; सर्व शास्त्रों का और सर्व सन्तों के हृदय का मर्म प्राप्त करने का यह एक ही मार्ग है। निर्वाण के लिए अर्थात् आत्मा की मुक्ति के लिए मान्य करने योग्य यही महामार्ग है तथा ईश्वर के घर का अर्थात् सर्वज्ञ भगवान के मार्ग का अथवा आत्मा के स्वभाव का मर्म प्राप्त करने का यह
Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.