Book Title: Samyag Darshan Part 02
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[सम्यग्दर्शन : भाग-2
पुरुषार्थ उत्तेजक होते हैं ज्ञानी के वचन
जो इच्छो परमार्थ तो करो सत्य पुरुषार्थ; भवस्थिति आदि नाम ले छेदो नहीं आत्मार्थ।
- आत्मसिद्धि-१३० आत्मा पुरुषार्थ करे तो क्या नहीं होता? बड़े पर्वतों के पर्वत छेद डाले हैं; और कैसे-कैसे विचार करके इसने रेलवे के काम में लिये हैं ! यह तो बाहर का काम है, तथापि जय किया है। आत्मा को विचारना, वह कहीं बाहर की बात नहीं है। अज्ञान है, वह मिटे तो ज्ञान होता है। __ अनुभवी वैद्य तो दवा देते हैं परन्तु यदि रोगी गले उतारे तो रोग मिटे; इसी प्रकार सद्गुरु अनुभव करके ज्ञान में ज्ञानरूप दवा देते हैं परन्तु मुमुक्षु ग्रहण करनेरूप गले उतारे, तब मिथ्यात्वरूप रोग मिटता है। दो घड़ी पुरुषार्थ करे तो केवलज्ञान हो - ऐसा कहा। रेलवे आदि, चाहे जैसा पुरुषार्थ करे तो भी दो घड़ी में तैयार नहीं होती, तो फिर केवलज्ञान कितना सुलभ है, वह विचार करो।
जो बातें जीव को मन्द कर डालती है, प्रमादी कर डालती है ऐसी बातें सुनना नहीं, उनसे ही जीव अनादि से भटका है। भवस्थिति, काल आदि का अवलम्बन लेना नहीं, वह सब बहाना है।
जीव को संसारी आलम्बन-विशेषताएँ छोड़ना नहीं और खोटे आलम्बन लेकर कहता है कि कर्म के उदय है; इसलिए मुझसे कुछ नहीं हो सकता। ऐसे अवलम्बन लेकर पुरुषार्थ नहीं करता।
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