Book Title: Samyag Darshan Part 02
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग-2 ]
यदि पुरुषार्थ करे और भवस्थिति तथा काल रोके, तब उसका उपाय करूँगा परन्तु प्रथम पुरुषार्थ करना।
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सच्चे पुरुष की आज्ञा आराधे, वह भी परमार्थरूप ही है, उसमें लाभ ही होता है, वह व्यापार लाभ का ही है ।
जिस मनुष्य ने लाखों रुपयों के सन्मुख मुड़कर देखा नहीं, वह अब हजार के व्यापार में बहाना निकालता है; उसका कारण अन्तर से आत्मार्थ की इच्छा नहीं है। जो आत्मार्थी हुए, वे वापस मुड़कर सन्मुख नहीं देखते, पुरुषार्थ करके सामने आ जाते हैं। शास्त्र में कहा है कि आवरण, स्वभाव, भवस्थिति पके कब ? तो कहते हैं कि पुरुषार्थ करे तब ।
पाँच कारण मिले, तब मुक्त होता है; वे पाँचों कारण, पुरुषार्थ में रहे हैं। अनन्त चौथे काल मिले, परन्तु यदि स्वयं पुरुषार्थ करे तो मुक्ति होती है। जीव ने अनन्त काल से पुरुषार्थ ही किया नहीं, सब खोटे अवलम्बन लेकर मार्ग में विघ्न डाला है । कल्याण वृत्ति उगे, तब भवस्थिति पकी जानना । शूरातन हो तो वर्ष का काम दो घड़ी में किया जा सकता है । (पृष्ठ ४३२)
ज्ञानी का वचन पुरुषार्थ प्रेरक होता है, अज्ञानी शिथिल है; इसलिए ऐसे हीन पुरुषार्थ के वचन कहता है। पंचम काल की भवस्थिति या आयुष्य की बात मन में लाना नहीं और ऐसी वाणी भी सुनना नहीं। (पृष्ठ ४१२)
भवस्थिति, पंचम काल में मोक्ष का अभाव आदि शंकाओं से जीव ने बाह्य वृत्ति कर डाली है परन्तु यदि ऐसे जीव, पुरुषार्थ करें और पंचम काल, मोक्ष होने में हाथ पकड़ने आवे, तब उसका
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