Book Title: Samyag Darshan Part 02
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
View full book text
________________
www.vitragvani.com
सम्यग्दर्शन : भाग-2]
[115
प्रभाव से यह देह मिलती है; इसलिए इससे शीघ्र आत्मसार्थकता कर लेनी चाहिए।.....गजसुकुमार जैसे छोटे बालक भी मानवता को समझने से मोक्ष को प्राप्त हुए। मनुष्य में जो शक्ति विशेष है, उस शक्ति से वह मदोन्मत्त हाथी जैसे प्राणी को भी वश में कर लेता है; इसी शक्ति से यदि वह अपने मनरूपी हाथी को वश में कर ले तो कितना कल्याण हो!' ___जगत् में एकेन्द्रिय तथा चींटी इत्यादि की संख्या बहुत है और नारकी व देवों की संख्या भी बहुत है परन्तु मनुष्य बहुत कम हैं। मनुष्यदेह प्राप्त होना महाकठिन है; इसलिए ऐसी दुर्लभ मनुष्यदेह प्राप्त करके शीघ्र आत्मकल्याण कर लेना चाहिए। शरीर से भिन्न ज्ञानमूर्ति आत्मा का भान कर लेने में ही मानव जीवन की सार्थकता है। श्रीमद् राजचन्द्र ने स्वयं छोटी उम्र में यह रचना की है और इसमें वैराग्य के दृष्टान्त भी छोटी उम्र के राजकुमारों के दिये हैं। गजसुकुमार आदि राजकुमार छोटी उम्र में आत्मभान करके, संसार से वैराग्य प्राप्त करके मोक्षदशा को प्राप्त हुए हैं। ___'किसी भी अन्य देह में पूर्ण सद्विवेक का उदय नहीं होता
और मोक्ष के राजमार्ग में प्रवेश नहीं हो सकता; इसलिए हमें मिली हुई दुर्लभ मानवदेह को सफल कर लेना आवश्यक है।' अन्य तीन गतियों में सम्यग्ज्ञान हो सकता है परन्तु पूर्ण सद्विवेक अर्थात् केवलज्ञान तो मनुष्यपने में ही होता है। सम्यग्दर्शन-ज्ञानचारित्र, वह मोक्ष का राजमार्ग है। सम्यग्दर्शन और ज्ञान ही मोक्ष का कारण है और वह चारों गतियों में होता है परन्तु सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञानपूर्वक सम्यक्चारित्र मोक्ष का राजमार्ग है अर्थात् साक्षात् मोक्षमार्ग है और वह इस मनुष्यभव में ही होता है - ऐसा
Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.