Book Title: Samyag Darshan Part 02
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग-2]
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जीव को भी सम्यग्दर्शन का अन्तरङ्ग हेतु कहा है। शास्त्र के शब्द तो अचेतन हैं और यह सम्यग्दृष्टि जीव तो स्वयं सम्यक्त्व परिणाम से परिणमित है; इसलिए शास्त्र की अपेक्षा इस निमित्त की विशेषता बतलाने के लिए 'अन्तरङ्ग' शब्द प्रयोग किया है। उसके बिना अकेले पुस्तक के निमित्त से कोई जीव अपूर्व सम्यक्त्व प्राप्त कर ले - ऐसा नहीं होता। यह देशनालब्धि का अवाधित नियम है। ___ यहाँ तो जो जीव सम्यग्दर्शन प्रगट करता है, वैसे जीव को कैसा निमित्त होता है ? यह पहचान करायी है। अज्ञानी को पूर्व में अनन्त बार जो देशनालब्धि प्राप्त हुई, उस देशनालब्धि की यहाँ बात नहीं है, क्योंकि उपादान के बिना निमित्त किसका?
सत् समझनेवाले जीव को सामने सत्रूप से परिणमित सम्यग्दृष्टि ही निमित्त होता है। अज्ञानी की वाणी सम्यग्दर्शन का निमित्त नहीं होती क्योंकि वह जीव स्वयं सम्यक्त्वरूप परिणमित नहीं हुआ है। ज्ञानी को तो स्वयं को दर्शनमोह के क्षयादिक हुए हैं; इसलिए वह सामनेवाले जीव को सम्यक्त्वपरिणाम में निमित्त हो सकता है। इस प्रकार सम्यग्दर्शन परिणाम में बाह्य निमित्त वीतराग की वाणी और अन्तरङ्ग निमित्त, जिन्हें दर्शनमोह का अभाव हुआ है - ऐसे जिनसूत्र के ज्ञाता पुरुष हैं।
ज्ञान का स्वभाव, स्व-पर प्रकाशक है। परमशुद्ध आत्मतत्त्व की श्रद्धा और ज्ञान होने पर जहाँ स्व-पर प्रकाशक ज्ञानसामर्थ्य खिला, वह ज्ञान ऐसा जानता है कि जीव के सम्यक्त्व परिणमन में सामने निमित्तरूप भी सम्यग्दृष्टि ही होता है। यद्यपि सम्यक्त्व परिणाम प्रगट करनेवाले जीव को तो जिनसूत्र तथा ज्ञानी ये दोनों
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