Book Title: Samyag Darshan Part 02
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग-2]
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एक बार वन्दे जो कोई भव भ्रमण ताकौ नहीं होई
यहाँ कहा तद्नुसार समझकर, यदि एक बार भी भगवान को नमस्कार करे तो उसे अल्प काल में मुक्ति हुए बिना नहीं रहे और उसे फिर से चार गति में भ्रमण न हो।
जिसे एक बार भी आत्मा के स्वभाव की यह बात रुच जाये, तत्पश्चात् उसे, यदि आत्मा चैतन्य मिटकर जड़ हो जाये तो उसकी रुचि बदले ! अर्थात् आत्मा का चैतन्यस्वभाव मिटकर कभी जड़ नहीं होता और उसकी रुचि नहीं बदलती। ध्रुवस्वभाव के आधार से हुई रुचि, स्वभाव के साथ शाश्वत् टिकी रहती है और अल्प काल में उसकी मुक्ति हो जाती है। ऐसी रुचि प्रगट करने के लिये स्वभाव के अतिरिक्त दूसरा कोई कारण है ही नहीं। ___ यहाँ, जिन्हें पूर्ण ज्ञान प्रगट हो गया है – ऐसे सिद्धों को नमस्कार किस प्रकार होता है ? - यह बात चल रही है। पूर्ण केवलज्ञान पर्याय स्वयं को वर्तमान में नहीं वर्तती और जिन्हें वह दशा प्रगट वर्तती है, उन्हें अपने ज्ञान में स्वीकार करना है तो ज्ञान किसकी ओर झुककर वह स्वीकार करेगा? पर के सामने देखकर पूर्ण ज्ञान का यथार्थ स्वीकार नहीं आता। पूर्ण ज्ञान के आधाररूप जो गुणी, अर्थात् आत्मस्वभाव है, उसके सन्मुख हुए बिना उस पूर्ण ज्ञान को स्वीकार नहीं किया जा सकता। स्वभाव के सन्मुख होकर अतीन्द्रियज्ञान का अंश अपने में प्रगट करे, तब ही पूर्ण अतीन्द्रिय केवलज्ञान का स्वीकार होता है और तभी सिद्ध भगवान को सच्चा नमस्कार किया कहलाता है। इसलिए सिद्ध को नमस्कार
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