Book Title: Samyag Darshan Part 02
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[सम्यग्दर्शन : भाग-2
यहाँ जगत के जीवों को प्रसन्न करने की बात नहीं है परन्तु जो अपना हित चाहता हो, उसे क्या करना - उसकी बात है। स्वयं का स्वभाव ज्ञान-आनन्द से भरपूर है, उसकी श्रद्धा करे तो उसमें से कल्याण हो; इसके अतिरिक्त अन्य से कल्याण तीन काल-तीन लोक में होता ही नहीं। (श्री समयसार, बन्ध अधिकार के प्रवचनों से )
अहो, रत्नत्रय महिमा! (त्रिभुवन पूज्य सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप रत्नत्रय ही सिद्धान्त का सर्वस्व है और वही तीनों काल में मोक्षगामी जीवों को मुक्ति का कारण है, यह बात ज्ञानार्णव में श्री शुभचन्द्राचार्य कहते हैं।)।
एतत्समयसर्वस्वं मुक्तेश्चेतन्निबन्धनम्। हितमेतद्धि जीवानामेतदेवाग्रिमं पदं॥२२॥
यह रत्नत्रय ही सिद्धान्त का सर्वस्व है, तथा यही मुक्ति का कारण है और जीवों का हित यही है तथा प्रधान पद यही है।
ये याता यान्ति यास्यन्ति यमिनः पदमव्ययम्। समाराध्यैव ते नूनं रत्नत्रयमखण्डितम् ॥२३॥
जो संयमी मुनि पूर्व में मोक्ष गये हैं, वर्तमान में जाते हैं और भविष्य में जायेंगे, वे वास्तव में इस अखण्डित रत्नत्रय को सम्यक् प्रकार से आराधन करके ही गये हैं, जाते हैं और जायेंगे।
साक्षादिदमनासाद्य जन्मकोटिशतैरपि। दृश्यते न हि केनापि मुक्तिश्रीमुखपंकजम्॥२४॥ इस सम्यक् रत्नत्रय को प्राप्त किये बिना करोड़ों-अरबों जन्म धारण करने पर भी, कोई जीव मोक्षलक्ष्मी के मुख-कमल को साक्षात् देख नहीं सकता।
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