Book Title: Samyag Darshan Part 02
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
View full book text
________________
www.vitragvani.com
54]
[सम्यग्दर्शन : भाग-2
निरंजन निज परमात्मतत्त्व के आश्रयरूप मार्ग से ही सर्व मुमुक्षु भूतकाल में पंचम गति को प्राप्त हुए हैं, वर्तमान में प्राप्त करते हैं और भविष्यकाल में प्राप्त करेंगे। ___ यह परमात्मतत्त्व, सर्व तत्त्वों में सार है, त्रिकाल निरावरण नित्यानन्द एकस्वरूप है, स्वभाव अनन्त चतुष्टय से सनाथ है, सुखसागर का पूर है, क्लेशोदधि का किनारा है, चारित्र का मूल है, मुक्ति का कारण है। सर्व भूमिका के साधकों को यही एक उपादेय है। ___ हे भव्य जीवों! इस परमात्मतत्त्व का आश्रय करके तुम शुद्ध रत्नत्रय प्रगट करो। इतना न कर सको तो सम्यग्दर्शन तो अवश्य ही करो। यह दशा भी अभूतपूर्व और अलौकिक है।
(नियमसार के उपोद्घात में से)
कौन प्रशंसनीय है? इस जगत में जो आत्मा, निर्मल सम्यग्दर्शन में अपनी बुद्धि निश्चल रखता है, वह कदाचित पापकर्म के उदय से दुखित भी हो
और अकेला भी हो तो भी वास्तव में प्रशंसनीय होता है और इससे उल्टा जो जीव अनन्त आनन्द को देनेवाले सम्यग्दर्शनादि रत्नत्रय से बाह्य है और मिथ्यामार्ग में स्थित है, ऐसे मिथ्यादृष्टि मनुष्य भले ही बहुत हों और वर्तमान में शुभकर्म के उदय से प्रसन्न हों तो भी वे प्रशंसनीय नहीं हैं; इसलिए भव्य जीवों को सम्यग्दर्शन धारण करने का निरन्तर प्रयत्न करना चाहिए।
( पद्मनन्दिपंचविंशति, देशव्रतोद्योतन, अधिकार-२)
Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.