Book Title: Samyag Darshan Part 02
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[सम्यग्दर्शन : भाग-2
ध्यान करनेरूप अभेदभक्ति पुरुषों को ही हो सकती है या हम स्त्रियों को भी होती है ?
तब भरत महाराजा उत्तर देते हैं - उस अभेदभक्ति के दो प्रकार हैं – (1) शुक्लध्यान, (1) धर्मध्यान । यद्यपि कहने में तो ये दोनों अलग लगते हैं परन्तु इन दोनों के अवलम्बनरूप आत्मा एक ही है; इसलिए ये एक ही प्रकार के हैं । आत्मस्वभाव के भान द्वारा स्त्रियों को भी धर्मध्यान हो सकता है। स्त्रियों को शुक्लध्यान नहीं हो सकता। धर्मध्यान की अपेक्षा शुक्लध्यान विशेष निर्मल है।
स्त्री हो या पुरुष, उन दोनों का आत्मा तो एक ही प्रकार का है। बाहर के शरीर के अन्तर से अन्दर के आत्मा में अन्तर नहीं पड़ता। ध्यान का अवलम्बन तो देह से भिन्न आत्मा है। शरीर के अवलम्बन से ध्यान नहीं होता है। स्त्री को भी आत्मा के अवलम्बन से धर्मध्यान होता है। आत्मा, शरीर से भिन्न है और अन्दर में पुण्य-पाप की वृत्ति होती है, उससे भी आत्मा भिन्न है।
समस्त जीवों को धर्म के लिए तो आत्मा का ही अवलम्बन है - ऐसे आत्मा का अवलम्बन करके ध्यान करे तो स्त्री को भी आत्मा का अनुभव होता है। आत्मा आनन्दस्वरूप है। उसकी पहचान करके उसके ध्यान में एकाग्र होने पर, पर का विचार छूट जाये, इसका नाम भला ध्यान है और पर के विचार में एकाग्र होने से आनन्दमूर्ति आत्मा को भूल जाना, वह बुरा ध्यान है। ___ मैं शरीरादि से भिन्न हूँ; पुण्य और पाप की शुभ-अशुभ वृत्तियाँ भी कृत्रिम हैं, वे नयी-नयी होती हैं और उनका जानने-देखनेवाला ज्ञानस्वरूप मैं त्रिकाल हूँ। ऐसे आत्मा की महिमा में एकाग्र होने से
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