Book Title: Samyag Darshan Part 02
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग - 2 ]
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आत्मा को प्रसन्न करने की धगश
अज्ञानी जीवों की बाह्यदृष्टि होने से वे ऐसा मानते हैं कि मैं पर का आश्रय लूँ तो धर्म हो... परन्तु ज्ञानी कहते हैं कि भाई ! उन सबका आश्रय छोड़कर तू अन्तर में तेरे आत्मा की श्रद्धा कर; आत्मा को प्रगट करने का आधार अन्तर में है । आत्मा की पवित्रता और आत्मा का आनन्द, आत्मा में से ही प्रगट होता है; बाहर से किसी काल भी प्रगट नहीं होता ।
जीवों को यह बात कठिन पड़ती है; इसलिए मानो दूसरा रास्ता लेने से धर्म हो जायेगा ! ऐसी उन्हें विपरीत शल्य बैठी है परन्तु भाई ! अनन्त वर्षों तक तू बाहर में देखा कर तो भी आत्मधर्म प्रगट नहीं होगा; इसलिए पर का आश्रय छोड़कर स्वतत्त्व की रुचि करना – प्रेम करना... मनन करना... वही सत्स्वभाव को प्रगट करने का उपाय है। इसलिए जो अपना हित चाहे, वह ऐसा करो - ऐसा आचार्यदेव कहते हैं ।
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जिसे अपना हित करना हो, उसे ऐसी गरज होगी। जिसे गरज नहीं है, उसकी तो बात ही नहीं है, क्योंकि जगत् के जीवों ने दुनिया प्रसन्न कैसे हो और दुनिया को रुचिकर कैसे हो ? - ऐसा तो अनन्त बार किया है परन्तु मैं आत्मा वास्तविक रूप से प्रसन्न होऊँ और मेरे आत्मा को वास्तव में रुचिकर क्या है ? - इसका कभी विचार भी नहीं किया, इसकी कभी दरकार भी नहीं की ।
जिसे आत्मा को वास्तव में प्रसन्न करने की धगश जगी, वह आत्मा को प्रसन्न करके ही रहेगा और उसे प्रसन्न, अर्थात् आनन्दधाम में पहुँचाकर ही रहेगा।
Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.