Book Title: Samyag Darshan Part 02
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[सम्यग्दर्शन : भाग-2
तत्त्व को जान तो सही, और उसे जानकर लीन तो हो! आत्मा में श्रद्धा, ज्ञान और लीनता प्रगट होती है, उसका आश्चर्य लाकर एक बार परद्रव्यों का पड़ोसी हो जा।
जिस प्रकार मुसलमान का और बनिये का घर समीप-समीप हों तो बनिया उसका पड़ोसी होकर रहता है परन्तु वह मुसलमान के घर को अपना नहीं मानता; इसी प्रकार तू चैतन्यस्वभाव में स्थिर होकर परपदार्थों का दो घड़ी पड़ोसी हो जा! आत्मा का अनुभव कर!
शरीर-मन-वाणी की क्रिया तथा पुण्य-पाप के परिणाम, वह सब तो पर हैं। विपरीत पुरुषार्थ द्वारा पर का स्वामित्वपना माना है, विकारीभाव की तरफ तेरा बहिर्लक्ष्य है, वह सब छोड़कर स्वभाव में श्रद्धा, ज्ञान और लीनता करके, एक अन्तर्मुहूर्त, अर्थात् दो घड़ी पृथक् होकर चैतन्यमूर्ति को भिन्न देख! उस आनन्द को अन्दर में देखने से तू शरीरादि के प्रति मोह को शीघ्र छोड़ देगा। 'झटिति' अर्थात् शीघ्र छोड़ देगा। भाई! यह बात सरल है क्योंकि तेरे स्वभाव की बात है। केवलज्ञान लक्ष्मी को स्वरूप सत्ता भूमि में ठहरकर देख, तो तू पर के साथ के मोह को शीघ्र छोड़ देगा। ___ तीन काल-तीन लोक की प्रतिकूलता के ढेर एक साथ सामने आकर खड़े रहें तो भी मात्र ज्ञातारूप से रहकर वह सब सहन करने की शक्ति आत्मा के ज्ञायकस्वभाव की एक समय की पर्याय में विद्यमान है। शरीर आदि से भिन्नपने आत्मा को जाननेवाले को परीषह के ढेर जरा भी असर नहीं कर सकते, अर्थात् उनमें चैतन्य अपने व्यापार से जरा भी नहीं डिगता।
कोई कोमल शरीरवाले जीवित राजकुमार को एकदम जमशेदपुर
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