Book Title: Samyag Darshan Part 02
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[सम्यग्दर्शन : भाग-2
पुस्तकें भर दें अथवा चाहे जितना कथन करे, परन्तु उससे सामनेवाले जीव को घी का स्वाद नहीं आ सकता; इसी प्रकार चैतन्य का कितना भी कथन किया जाए, किन्तु अनुभव के बिना उसका पता नहीं पड़ता, अर्थात् साक्षात्कार नहीं होता।
भाई! आत्मा को जाने बिना जन्म-मरण का अन्त नहीं आ सकता। आत्मा, जानने-देखनेवाला पदार्थ है; महिमावन्त भगवान है; वाणी, जड़-अचेतन है, उससे आत्मा ज्ञात नहीं होता। तब आत्मा को जानने का उपाय क्या? यही कि स्वानुभव द्वारा वह ज्ञात होता है। लाखों-करोड़ों प्राणियों में कोई विरला प्राणी ही अन्तर में अनुभव करके आत्मा को जानता है। पुण्य से आत्मस्वरूप की पहचान नहीं होती, क्योंकि वह तो आत्मस्वरूप से बहिर्भाव है। आत्मतत्त्व, अन्तर्मुख स्वानुभव से ही ज्ञात होता है । करोड़ों जीवों में कोई विरले जीव ही स्वानुभव से जिस आत्मा को जानते हैं, वह आत्मस्वभाव इस जगत् में जयवन्त वर्तो – ऐसा कहकर, यहाँ माङ्गलिक किया है। ___ अन्तर में आत्मस्वरूप तो प्रत्येक को है परन्तु स्वानुभव द्वारा करोड़ों जीवों में कोई विरले जीव ही उसे जानते हैं । यद्यपि वह अन्तर में है तो, तथापि बाहर में भ्रमते हैं।
एक शिष्य को ज्ञान चाहिए था। उसने किसी के समीप जाकर कहा कि मुझे ज्ञान दो, तब उसने कहा कि अमुख सरोवर की मछली के पास जाकर कहना, वह तुझे बतायेगी। वह मनुष्य, मछली के पास गया और कहने लगा – 'हे मछली ! मुझे ज्ञान चाहिए।' तब मछली ने कहा – 'भाई ! मुझे बहुत जोरदार प्यास लगी है; इसलिए पहले मुझे पानी पिलाओ, फिर मैं तुम्हें ज्ञान
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