Book Title: Samraicchakaha Part-1
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Mangal Parekhno Khancho Jain Sangh - Shahpur - Ahmedabad
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समराइच्चकहा ।
॥५३१॥
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माहवणभीसण विरयपायार सिहरसंघायं । उत्तुङ्गवेणुलम्बियदीहरपोण्डरियकत्तिझयं ॥ दीणमुपासपिण्डिय बन्दयवी भच्छरुद्धओवासं । निसियकरवालवावडकरसबरजुवाणपरियरियं ॥ विस समाय पडुप हसवित्तत्थसउण संघायं । अच्चतरुयन्तस दुक्ख सब रिविलयाजणाइणं ॥ विडग दन्त निम्मियभित्तिसमुक्किन्नमूलसंघायं । तक्खणमेचु कत्तियचम्मसमोच्छइयगव्भहरं ॥ पुरिसवसापरिपूरियक वालपज्जलियमङ्गलपईवं । उज्झन्तविल्लगुग्गुलुपवियम्भियधूमसंघायं ॥ सवरहरुहिर क्खयगयमोतियरइयसत्थियसणाहं । चन्दकरधवलदीहरपरिलम्बियचमरसंघायं ॥ रुहिरकसव्वालम्बियदी हरवणकोलवन्भनिउरुम्बं । कङ्केल्लिपल्लवुप्पङ्कनिमियरेहेन्त धरणितलं ॥ मृगनाथवदनभीषणविरचितप्रकार शिखरसंघातम् । उत्तुङ्गवेणुलम्बित दीर्घपौण्डरीककृत्तिध्वजम् ॥ दीनमुखपाशपिण्डितबन्दिकबीभत्सरुद्धावकाशम् । निशितकरवा लव्यापृत करशवर युवपरिकरितम् ॥ विषमसमाहतपटुपटहशब्द वित्रस्त शकुनसंघातम् । अत्यन्तरुदत्सदुःखशबरीवनिताजनाकीर्णम् ॥ विकटगजदन्तनिर्मितभित्तिसमुत्कीर्णशूलसंघातम् । तत्क्षणमात्रोत्क र्तितचर्मसमाच्छादितगर्भगृहम् ॥ पुरुष वसा परिपूरितकपालप्रज्वलितमङ्गलप्रदीपम् । दह्यमानबिल्वगुग्गुलुप्रविजृम्भितधूमसंघ शबरवधूरुधिराक्षतगजमौक्तिकरचितस्वस्तिकसनाथम् । चन्द्रकरधवलदीर्घपरिलम्बितचामरसंघातम् ॥ रुधिर- (कसव्व दे.) व्याप्तालम्बित दीर्घवनकोलवनिकुरम्बम् । कंकेल्लि (अशोक) पल्लवोत्पक (राशि) न्यस्तराजद्धरणीतलम् ||
॥
१ धूमनिउरुं क । २ रायंत- क ।
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छट्टो भवो ।
॥ ५३१ ॥
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