________________
खजुराहो की जैन मूर्तियां
मारुतिनन्दन प्रसाद तिवारी मध्य प्रदेश के 'छतरपुर जिले में स्थित खजुराहो चन्देल शासकों की राजधानी रही है। चन्देलों ने नवों (नग्नुक-८२५-१० ई.) से बारहवीं शती ई. के मध्य (मदनवमन' ११९९-६३ ई० ) इस क्षेत्र में शासन किया । चन्देल शासकों के शासन काल में यहां अनेक मंदिरों एवं मूर्तियों का निर्माण हुआ । ये मंदिर एवं मूर्तियां शैव, वैष्णव, शक्ति एवं जैन संप्रदायों से सम्बन्धित है। जनश्रुति के अनुसार खजुराहो में कुल ८५ मंदिर ये। किन्तुः वर्तमान में केवल २२ मन्दिर ही सुरक्षित हैं। खजुराहो के इन मन्दिर का निर्माणकाल सामान्यतः नवों से ग्यारहवीं शती ई. के मध्य स्वीकार किया गया है। खजुराहों के" ये मन्दिर अपनी वास्तुकला एवं शिल्प-वैभव के लिए विश्वप्रसिद्ध है । विभिन्न मन्दिरों पर उत्कीर्ण काम-क्रिया से सम्बन्धितः मूर्तियां पर्यटकों का विशेष आकर्षण है।
धर्मसहिष्णु चन्देल शासकों ने जैनधर्म को भी अपना समर्थन दिया था । खजुराहो के तीन विशाल जैन मन्दिर एवं वहां की बिखरी प्रभूत जैन मूर्तियां इसकी स्पष्ट साक्षी है। पार्श्वनाथ का विशाल जैन मन्दिर धंग के शासन काल में निर्मित हुआ । जैन आचार्य वासवचन्द्र धंग के महाराजगुरु थे' चिन्होंने अपने प्रभाव का निश्चित हो उपयोग किया होमा । इसका प्रमाण धंग के शासन काल का पार्श्वनाथ मन्दिर है । साथ ही व्यापारी पाहिल्ल द्वारा पार्श्वनाथ मन्दिर को पांच वाटिका दान दिये जाने के फलस्वरूपाचंग, द्वारा उसके सम्मान का उल्लेख भी जैन धर्म के प्रति उदार दृष्टिकोण का ही सूचक ।. पार्श्वनाथ मन्दिर का निर्माण सम्भवतः पाहिल्ल द्वारा किया गया था। पार्श्वनाथ मन्दिर के वि० सं० १०११ (९५४ ई.) के अभिलेख में घंग के साथ ही महाराजगुरु वासवचन्द्र का भी उल्लेख है। मन्दिर की विशालता, भव्यता; एवं दीवारों पर ब्रह्मा, शिव, विष्ण राम व बलराम जैसे हिन्दू देवों की स्वतन्त्र एवं शक्तिसहित मूर्तियां स्पष्टतः मन्दिर के निर्माण में शासकीय सहयोग एवं हिन्दू प्रभाव को दरशाते हैं।
खजुराहो की जैन मूर्तियों के निर्माण में व्यापारी वर्ग की भी महत्वपूर्ण भूमिकाही
मूर्ति-लेखों से ज्ञात होता है कि व्यापारी परिवार के पाडि उसके पिता श्रेष्ठी देदू तथा उसके पूर्वजों ने जैनधर्म स्वीकार किया था और जैन धर्म को सक्रिय समर्थन दिया था । खजुराहो के एक मूर्तिलेख (१०७५ ई०) में श्रेष्ठी बीवनशाही भार्या पदमावती द्वारा आदिनाथ की मूर्ति स्थापित कराने का उल्लेख है। खजुराहो के ११४८ ई० के एक अन्य मूर्तिलेख में श्रेष्ठी पाणिधर के पुत्रों (त्रिविक्रम, आल्हण तथा लक्ष्मोधर) के नामों का, तथा ११५८ ई० के एक तीसरे लेख में पाहिल्ल के वंशज एवं ग्रहपति कुल के साधु साल्हे द्वारा संभवनाथ को मूर्ति की स्थापना का उल्लेख है।
.
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org