Book Title: Sambodhi 1981 Vol 10
Author(s): Dalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 309
________________ पद्मसुन्दरसूरिविरचित तत्र नन्दोत्तरा नन्दा सुनन्दा नन्दिवर्धिनी । विजया वैजयन्ती च जयन्ती चापराजिता ॥ ४० ॥ Jain Education International एताः प्राञ्चकादेत्य नत्वाऽर्हन्तं समातरम् । कलगीर्ति तांस्तस्थुर्दर्पणपाणयः गायन्त्यः समाहारा सुप्रदत्ता लक्ष्माती शेषवती ॥ ८१ ॥ सुप्रबुद्धा यशोधरा । चित्रगुप्ता वसुन्धरा ॥ ८२ ॥ अष्टावपाचीरुचकादेत्यैता नततत्क्रमाः त्रिः परीत्य कृतोद्गानास्तस्थुर्भृङ्गारपाणयः ॥ ८३ ॥ इलादेवीं सुरादेवी पृथ्वी पद्मावती तथा । एकनासा नवमिका भद्राऽशोका च ता इमाः ||८४|| प्रतीचीच कादंष्टावभ्येत्याऽऽनततत्कमाः । तिस्रः प्रदक्षिणा दत्त्वा तालवृन्तकराः स्थिताः ॥८५॥ अलम्बुसा मिलकेशी पुण्डरीका च वारुणी । हासा सर्वप्रभा श्री हीरष्टोदम्रुचकादिमाः ॥८६॥ भगवन्मातरं तथा 1 अभ्येत्य भगवन्तं तं त्रिः परीत्य नमस्कृत्य तस्थुश्चामरपाणयः ॥ ८७॥ (८०-८१) उनमें से नन्दोत्तरा, नन्दा, सुनन्दा, नन्दिवर्द्धिनी, विजया, वैजयन्ती, जयन्ती व अपराजिता ये दिकन्याएँ रुचक के पूर्वभाग से आकर माता सहित भर्हत् देव को नमस्कार करती थी तथा हाथ में शीशा (दर्पण) लेकर मधुर कण्ठ से गाती हुई स्थित (८२-८३) समाहारा, सुप्रदत्ता, सुप्रबुद्धा, यशोधरा, लक्ष्मीवती, शेषवती, चित्रगुप्ता, सुध ये माठ दिक्कन्यायें रुचक के दक्षिण भाग से आकर नतमस्तक हुई तथा भारी हाथ में लिए हुए तीन परिक्रमा करके गाती हुई स्थित रहीं । ४-८५) इलादेवी, सुखदेवी, पृथ्वी, पदमावती, एकनासा, नव. मेका, भद्रा तथा अशाका मारियाँ इक के पश्चिम भाग से जोर नतमस्तक होकर, तीन तीन प्रदक्षिणा देकर वृक्ष का गुच्छा) करे रहीं। (८६-८७) अबुसा, जितकेशी, पुण्डरीका, "वारुणी, होसा, सर्वप्रमा, श्री, ही दिक्कन्याए रुचक के उत्तरभाग से आकर भगवान् जिनदेव तथा उनकी माता को करके चामर हाथ में लिये हुए स्थित रहीं । For Personal & Private Use Only मोहे" नमस्कार www.jainelibrary.org

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