Book Title: Sambodhi 1981 Vol 10
Author(s): Dalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 325
________________ पद्मसुन्दरसूरिविरचित द्रवरूपाय शुद्धाय नमः सलिलमूर्तये । निःसंगतागुणाढ्याय दधते पावनी तनुम् ॥२०९॥ शुक्लध्यानाग्नये तुभ्यं नमः कर्मेन्धनप्लुषे । रजःसङ्गवियुकाय विभवे खात्मने नमः ॥२१०॥ सर्वक्रतुस्वरूपाय यजमानात्मने नमः । नमः सोमस्वरूपाय जगदाह्लादिनेऽस्तु ते ॥२११॥ अनन्तज्ञानकिरणस्वरूपायार्कतेजसे । अष्टमूर्तिस्वरूपाय नमो भाविजिनाय ते ॥२१२।। दशावताररूपाय मरुभूत्यात्मने नमः । .. नमो गजावताराय नमस्ते त्रिदशात्मने ॥२१३॥ विषाधरावतारायाच्युतदेवाय ते नमः । वज्रनाभिस्वरूपाय अवेयकसुरात्मने ॥२१४॥ कनकप्रभरूपाय नमस्ते प्राणतर्भवे । नमः श्रीपार्श्वनाथाय लोकोद्योतकराय ते ॥२१५।। कमठासुरदाग्निजलदाय नमोनमः ।, अनेकान्तस्वरूपाय नमस्ते सर्वदर्शिने ॥२१६॥ (२०९) द्रवस्वरूप शुद्ध सलिल आपको नमस्कार हो। मिःसंगतागुण से भरपूर पवनघटित शरीर को धारण करने वाले आपको नमस्कार हो । (२१०) कर्मरूप काष्ठ को जलाने वाले शुक्लध्यामाग्नि रूप आपको नमस्कार हो । रजोगुण के संग से मुक्त व्यापक आकाशरूप आपको नमस्कार हो । (२११) सर्वयज्ञ स्वरूप यजमानरूप आपको नमस्कार हो। जगत् को आहाद देनेवाले अपको नमस्कार हो। (२१२) अनन्त ज्ञान की किरणें ही जिसकी आत्मा है ऐसे सूर्यप्रकाशरूप ( आपको नमस्कार हो)। (इस प्रकार) अष्टमूर्तिरूप भावी जिनदेव को नमस्कार' हो । (२१३) दशावताररूप मरभूति की आत्मा को नमस्कार हो । गजावतार को नमस्कार हो । त्रिदशात्मन् देवरूप भापको नमस्कार हो । (२१४) विद्याधरावतार को तथा अच्युतदेवरूप आपको नमस्कार हो । वजनाभिस्वरूप और प्रैवेयकदेवरूप आपको नमस्कार हो । (२१५) कनकप्रभरूप और प्राणतदेवरूप आपको नमस्कार हो । लोक को प्रकाशित करने वाले श्रीपार्श्वनाथ को नमस्कार हो। (२१६) कमठरूप राक्षस की दर्प रूप अग्नि को शान्त करने में मेघसमान आपको नमस्कार हो । अनेकान्तस्वरूप समदर्शी आपको नमस्कार हो। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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