Book Title: Sambodhi 1981 Vol 10
Author(s): Dalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 330
________________ श्रीपार्श्वनाथचरितमहाकाव्य स्मितलीला बभुश्चास्य बालेन्दोरिव चन्द्रिकाः । याभिर्मन:प्रमोदाम्भोनिधिः पित्रोरवर्धत ॥१७॥ श्रियः किं हास्यलीलेव कीर्तिवल्ले: किमकुरः । मुखेन्दोश्चन्द्रिका वाऽस्य शिशोर्मुग्धस्मितं बभौ ॥१८॥ या जिनार्भस्य वदनादभूम्मन्मनभारतो । श्रोत्राञ्जलीभिस्ता पीत्वा पितरौ मुदमापतुः ॥१९॥ गतः स्खलत्पदेः सौधाङ्गणभूमिषु सश्वरन् । आबद्धकुट्टिमास्वेष बभौ सुभगहुकृतिः ॥२०॥ सरूपवेषैश्चिक्रीड समं सुरकुमारकैः । रत्नरेणुषु तन्वानः स पित्रो दि सम्मदम् ॥२१॥ कलाभिरिव बालेन्दुर्जगदाह्रादकृद्विभुः ।। विभृतिभिरनन्ताभिः परिष्वक्ताभिरानृधे ॥२२॥ शैशवादप्यपेतस्य कौमारं बिभ्रतो वयः । वपुषा सह भूयांसो विभोर्ववृधिरे गुणाः ॥२३॥ तस्य दिव्यं वपुर्वाचो मधुराः स्मितमुज्ज्वलम् । आलोकनं सलावण्य जहूश्चेतांसि जन्मिनाम् ॥२४॥ (१७) बालचन्द्रमा की चाँदनी की तरह इस कुमार की हास्यलीला प्रकाशित थी, जिन हास्यलीलाओं से माता पिता का मन-प्रमोद का सागर प्रतिदिन बढ़ता रहता था। (१८) क्या श्रीदेवी की डास्थलीका है, क्या कीर्तिलता का अंकुर हैं या मुखचन्द्र की चन्द्रिका है ? -(ऐसी आशंकाएं देखने बालों के मन में जगाता) शिशु का मुग्ध हास्य मानो चमक रहा था। (१९) इस 'जिनशिश के मुख से जो तोतली (मम्मन) वाणी निकलती थी, उस वाणो का कर्णाजली से पान कर (अर्थात सुनकर ) माता पिता अतीव प्रसन्न होते थे । (२०) राजप्रसाद के फर्श वाले आंगन में स्खलित पदों से चलता फिरता वह-पाश्र्वकुमार सुन्दर हुँ' हु' की ध्वनि से प्रांगण में अतीव शोभित होता था। (२१) अपने समान ही सुन्दरस्वरूप तथा वेषभूषा से युक्त देवकुमारों के साथ वह रत्नधूलि में मातापिता के हृदय में प्रसन्नता फैलाता हुआ, खेला करता था। (२२) कलाओं से युक्त बालचन्द्र बार संसार को आहलादित करने वाला वह भगवान अनन्त विभूतओं से अतीव भालिंगित हो, पता था । (२३) शैशवावस्था से भी आगे कुमारावस्था में प्रवेश करने काळे इस प्रभु क री के साथ ही अनेक गुण बढने लगे। (२४) उसका दिव्य शरीर, मधुरवाणो, उज्ज्वल हास भौर सौन्दर्यशाली अवलोकन, प्राणियों के चित्तों को आकृष्ट करते थे। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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