Book Title: Sambodhi 1981 Vol 10
Author(s): Dalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 338
________________ श्रीपाश्र्वनाथचरितमहाकाव्य इत्याकर्ण्य वचस्तस्य दूतस्य ज्वलितः क्रुधा । संदष्टौष्ठपुट: सोऽभूद् भृकुटीकुटिलाननः ॥८॥ प्रसेनजिदुवाचाऽथं त्वमवध्योऽसि भूभृताम् । मो चेद् वाक्यफलं तावद् ददाम्यथैव ते द्रुतम् ॥८२॥ -- मम धीरस्य वीरस्य पुरतः समरगणे । कथं स्थास्यति गन्ता वा यमनो यमशासनम् ॥८३॥ श्रुत्वेत तद्वचो दूतो गत्वोचे स्वप्रभु प्रति । अथ स्वसचिवैः सार्धं प्रसेनजिदमन्त्रयत् ।। ब्रत भोः ! सचिवाः ! सोऽस्ति यमनो दुर्मदोद्धरः। तेन सन्धिविधीयेत विग्रहो वा तदुच्यताम् ॥८५।। अथाह वृद्धसचिवो राजनीतिविशारदः ।। प्रभूणां तावता श्रेयो यावत् तेजोऽभिवर्धते ॥८६॥ मदक्लिन्नकटैर्यावत् स्वयं नखविदीरितैः । मातङ्गैर्वर्तनं तावन् मृगेन्द्रस्य मृगेन्द्रता ८७॥ ' विहाय समरं नो चेन्मृत्युर्युक्तं पलायनम् । अथ मृत्युधुवस्वत् किं मुधा विधाप्यते यशः ॥८८। (८१) उस दूत के इस प्रकार के वचन को सुन कर जला हुआ वह राजा प्रसेनजित् अपने होठों को काटता हुआ कुटिल भौहों वाले मुखवाला हो गया। (८२) राजा प्रसेनजित ने कहा-दत ! तू अवध्य है । अन्यथा इस बाका का फल शीघ्र ही मैं तुझे देता मुग्न धीर वौर (प्रसेनजित्) के सम्मु व रण रूपी आँगन में वह यमन कैसे ठहर सकेगा अर्थात् शीघ्र ही यमराज्य को चला जायेगा । (८३) दूत ने प्रसेनजित् राजा के यह बचन सुनकर, यमनराजा को जाकर कह दिये । प्रसेनजित् ने अाने मन्त्रिों के साथ मंत्रणा प्रारम्भ कर दी । (८५) हे मन्त्रियों !, कहो, वह यमन बड़ा ही दुष्ट है, उसके साथ सन्धिी जाये या युद्ध किया जाये. स्पष्ट बोलो । (८६) तब वह सचिा जो राजनीति में पण्डित था बोला-राजाओं का तभी तक कल्याग है, जब तक (उना) पराका बहता है। (15) मा 'से टपकते हुए गण्डस्थल वाले और आने नखों से चीरे हुए हार्थियों से • जब तक 'मृगराजसिंह अपनी आजीविका करता है तब तक ही उसको मृगेन्द्रता है । (८८) युद्धभूमि छोड़ने से अगर (कभी) मृत्यु होती ही. न हो तब तो (युद्धभूमि से) भाग जाना, ठोका है। यदि मृत्यु निश्चित ही है तो फिर यश को बेकार क्यों नष्ट करते हो ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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