Book Title: Sambodhi 1981 Vol 10
Author(s): Dalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 328
________________ चतुर्थः सर्गः अथाऽश्वसेनः पार्श्वस्य जातकर्मोत्सवं मुदा । प्रारेमे मङ्गलोद्गीतविभावितपुरस्सरम् ॥१॥ उत्तम्भितपताकाभिर्बभौ वाराणसी पुरी । सा ताभिराह्वयन्तीव कौतुकोत्कण्ठितान नरान् ॥२॥ यस्यां कृष्णागुरूद्दामधूपधूमविवर्तनैः । घनभ्रान्त्या वितन्वन्ति केका नृत्यकलापिनः ॥३॥ उद्यन्मङ्गलसङ्गीतमुखध्वानजडम्बरैः । दिग्दन्तिकर्णतालाश्च पाप्य यैर्बधिरीकृताः ॥४॥ कृतपुष्पोपहाराश्च पुरवीथयो विरेजिरे । भाबद्धतोरणोत्तुङ्गं गोपुरं कलशौछूितम् ॥५॥ चलन्तभिः पताकाभिः नृत्यन्तीय पुरी बभौ । पटवासैभिव्याप्तमन्तरिक्ष सुसंहतैः ॥६॥ बद्धाः प्रतिगृहद्वारं यत्र वन्दनमालिकाः । पौरा बभुः सनेपथ्याः सानन्दाश्चन्दनाञ्चिताः ॥७॥ नानागीतैर्महातोयैस्ताण्डबाडम्बरशम् । पौरः सर्वोऽपि कुतुकालोकनव्याकुलोऽभवत् ॥८॥ (१) तत्पश्चात् महाराजा अश्वसेन ने पार्श्वकुमार के जातकर्म संस्कार को प्रसन्न हो कर मंगल गायन के साथ प्रारंभ किया । (२) वह वाराणसी नगरी (उस समय) ऊँची लहराती हुई पताकाओं से शोभित हो रही थी। ऐसा लगता था मानो वह नगरी लहराती हुई पताकाओं के द्वारा, कौतुक से उत्कण्ठित लोगों को बुला रहो हो । (३) जिस नगरी में, कृष्णागुरु धूप आदि के धुएँ से उठे हुए चक्रों में बादल की भ्रान्ति से नाचते हुए मयूर अपनी केकारव (मयूरोंकी ध्वनि) फैला रहे थे । (४) गाये जाने वाले मङ्गल संगीत की मुखध्वनि के आडम्बर ने मानों दिग्गजों के कर्णतालों को व्याप्त करके बहिरे कर दिये हों। (५) पुष्पों के अलंकरण से नगर की गलियां शोभित थीं। अनेक बाँधे हुए उन्नत तोरण वाले गोपुर (बुलन्द द्वार) उच्च कलशों से शोभित हो रहे थे। (६) उड़ती हुई पताकाओं से वह नगरी (वाराणसी) मानो नृत्य करती हो ऐसी शोभित हो रही थी (तथा) सुसंगठित सुगन्धित चूर्णो से सारा गगनमण्डल व्याप्त था। (1) प्रत्येक गृहद्वार पर वन्दनमालाएँ बंधी थीं । सुन्दर कपड़ों में सजे चन्दनचर्चित गावाले नागरिक लोग बड़े आनन्द के साथ देदीप्यमान हो रहे थे । (4) अनेक प्रकार के गीत, वाद्य व नृत्य के आडम्बरों से युक्त सम्पूर्ण जनपद कौतुक देखने को व्याकुल था । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org


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