Book Title: Sambodhi 1981 Vol 10
Author(s): Dalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 308
________________ भीपार्श्वनाथचरितमहाकाव्य दिवि दुन्दुभयो । वेदुर्विष्वम् चानतताम्बराः । आसन् सुराऽसुराः सेन्द्राः सान्द्रानन्दधुसुन्दराः ॥७२॥ गजदन्तायधःस्थास्तु . दिक्कुमार्यः । समाययुः । जिनजन्मावधेत्विाऽधोलोकात् कम्पितासनाः ॥७३॥ भोगकरा भोगवती सुभोगा भोगमालिनी । सुवरसा वत्समित्रा च पुष्पमाला च नन्दिता ॥७॥ जिनं जिनाम्बामानभ्य ताः संवर्तकवायुना । सम्मृजन्ति स्म सद्भक्त्या क्षेत्र-योजनमण्डलम् ॥७॥ अथोलोकवासिन्यो मेरुनन्दनसंस्थिताः ।.. अभ्येयुर्दिक्कुमार्योऽष्टौ ... तत्क्षणाच्चलितासनाः ॥६॥ मेघङ्करा मेघवती सुमेघा मेघमालिनी ।। तोयधरा विचित्रा च वारिषेणा बलाहिका ७७॥ विकुाऽभ्राणि ता गन्धोदकवृष्टिं वितेनिरे । अवावरी च पांशूनां तत्क्षेत्रे कुसुमाञ्चिताम् ॥७॥ रुचकद्वीपमध्यस्थरुचकादिशिरःस्थिताः । . . चत्वारिंशदिमास्ताश्च दिनविदिग्मध्यकूटगाः ॥७९॥ (२) स्वर्ग में नगाड़े बजने लगे, चारों ओर सुन्दर ध्वनियों से भाकाम व्याप्त हुमा। मुर, असुर, सभी भाव ओर मानन्द को चमक से सौन्दर्यसम्पन्न बन गये । (७३) अपने माखन कम्पित होने पर अवधिज्ञान से जिनप्रभु के जन्म को जानकर गजदन्त मादि के नीचे स्थित बिमारिका मयोलोकसे आयीं । (७४-७५) भोगङ्गकरा, भोगवतो, सुभोगा, भोगमालिनी, सुवा, वत्समिंत्रा, पुष्पमाला व नन्दिता ये दिक्कन्याएँ जिनदेव तथा जिममाता को प्रणाम करके भक्तिपूर्वक सम्वर्तक वायु से योजनपर्यन्त भूमि को पवित्र करती थीं। (७६) ऊर्यलोक बसने वाली मेरुनन्दनस्थित आठों दिक्कुमारियां, जिनका आसन कम्पित हो गया था, तत्काल (७-७८) मेघंकरा, मेघवती, सुमेधा, मेघमालिनी, तोयधरा, विचित्रा, वारिषणा, बसहिया कन्याओं ने बादलों का निर्माण कर, धूलि को दूर करनेवाली पुष्पसम्मिभित गन्पोक की हुष्टि उस क्षेत्र में को । (७२) रुचकद्वीप के मध्य में स्थित, स्वकपर्वत की चोटी पर रहने वाली, दिग-विदिग्-मध्यकूटवासिनी चालीस वे दिक्कुमारियां भी आ पहुँची ।' Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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