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मारुतिनन्दन प्रसाद तिवारी
बृहत्संहिता ( वराहमिहिरकृत ५८.४५ ) में जिन मूर्ति के सामान्य लक्षणों की चर्चा है । जिन मूर्तियों में पारम्परिक लांछनों, यक्ष-यक्षी युगलों एवं अष्टप्रातिहार्यो का प्रदर्शन गुप्त काल में ही प्रारम्भ हुआ । लांछनों से युक्त प्राचीनतम जिन मूर्तियाँ नेमिनाथ एवं महावीर की हैं। ये मूर्तियाँ क्रमशः राजगिर ( बिहार ) और वाराणसी ( भारत कला भवन, वाराणसी - क्रमांक १६१ ) से मिली हैं । ऋषभनाथ एवं पार्श्वनाथ के साथ पूर्ववत् लटकती जटाओं और सात सर्पणों के छत्र का प्रदर्शन हुआ है । यक्ष-यक्षी युगल से युक्त पहली जिन मूर्ति ( लगभग छठीं शती ई० ) श्वेतांबर स्थल अकोटा (गुजरात ) से मिली है । ऋषभनाथ की इस मूर्ति में यक्ष-यक्षी सर्वानुभूति ( या कुबेर ) और अंबिका हैं । लगभग सातवीं-आठवीं शती ई० से जिन मूर्तियों में यक्ष-यक्षी युगलों का नियमित अंकन होने लगा ।
जैन ग्रंथों में लगभग आठवीं-नवीं शती ई० तक सभी २४ जिनों के लांकन और यक्ष - यक्षी युगलों की सूची निर्धारित हुई । प्रारम्भिकतम सूचियाँ कहावली एवं तिलोयपण्णन्ति में हैं । २४ यक्ष-यक्षी युगलों की स्वतन्त्र लाक्षणिक विशेषताएँ लगभग ग्यारहवीं-बारहवीं शती ई० में नियत हुई, जिनके उल्लेख निर्वाणकलिका, त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, प्रतिष्ठासारसंग्रह एवं प्रतिष्ठासारोद्धार में हैं ।
२४ बिनों में प्रथम जिन ऋषभनाथ एवं अंतिम तीन जिन, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ एवं महावीर ही सर्वाधिक लोकप्रिय रहे हैं । सर्वत्र इन्हीं चार जिनों की सर्वाधिक स्वतन्त्र मूर्तियाँ बनीं। इन्हीं चार जिनों से सम्बन्धित यक्ष और यक्षियों ( गोमुख - चक्रेश्वरी, कुबेर-अंबिका, धरणेन्द्र- पद्मावती, मातंग - सिद्धायिका) को भी साहित्य और शिल्प दोनों में ही सर्वाधिक लोकप्रियता प्राप्त थी । रूपमण्डन में २४ जिनों में से उपर्युक्त चार जिनों एवं उनसे सम्बन्धित यक्षियों को विशेष रूप से पूज्य बताया गया है" ।
खजुराहो में जिनों की सर्वाधिक मूर्तियाँ उत्कीर्ण हुई । खजुराहो में लगभग ९५० ई० से ११५० ई० के मध्य की २०० से अधिक जिन मूर्तियाँ हैं । इस संख्या में मंदिरों की दीवारों एवं उत्तरंगों की छोटी जिन मूर्तियाँ नहीं सम्मिलित है । स्वतन्त्र जिन मूर्तियों के साथ ही खजुराहो में जिनों की द्वितीर्थी, त्रितीर्थी और चौमुखी ( सर्वतोभद्रिका प्रतिमा) मूर्तियाँ भी बनीं। खजुराहो की जिन मूर्तियाँ प्रतिमा लाक्षणिक दृष्टि से पूर्ण विकसित जिन मूर्तियाँ है । जिनमें लांक्षन, यक्ष-यक्षी युगल, अष्ट प्रातिहार्य, लघु जिन मूर्तियाँ, नवग्रह एवं अन्य पारम्परिक विशेषताएं प्रदर्शित हैं । खजुराहो की प्राचीनतम जिन मूर्तियाँ पार्श्वनाथ मन्दिर (९५०-७० ई०) की है।
संक्षेप में खजुराहों की जिन मूर्तियों की निम्नलिखित विशेषताएं हैं। सभी मूर्तियों के वक्षःस्थल में श्रीवत्स चिह्न है । जिनों को केवल पारम्परिक मुद्राओं (ध्यानमुद्रा और कायोसर्ग) में ही निरूपित किया गया है। ध्यानमुद्रा में आसीन जिन मूर्तियां तुलनात्मक दृष्टि से अधिक हैं । खजुराहो की जिन मूर्तियां मथुरा एवं देवगढ़ जैसे समकालीन दिगंबर कलाकेन्द्रों की जिन मूर्तियों के समकक्ष ठहरती है ।
खजुराहो में जिनों को अलंकृत आसनों पर कायोत्सर्ग में खड़ा या जमान दिखाया गया हैं । अलंकृत आसन के नीचे सिंहासन है, जिसके
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ध्यानमुद्रा में विराछोरों पर सिंहासन
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