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मारुतिनन्दन प्रसाद तिवारी शित है। द्विभुज यक्ष और चतुर्भुजी यक्षो की आकृतियों वाली एक मूर्ति स्थानीय शांतिनाथ संग्रहालय (क्रमांक के. १००) में सुरक्षित है। यक्ष और यक्षी दोनों ही सर्पफणों के छत्र से युक्त है। यक्षके हाथों में फल व जलपात्र हैं। यक्षी के दो अवशिष्ट करों में पद्म और अभयमुद्रा प्रदर्शित है।
पारम्परिक विशेषताओं वाले यक्ष-यक्षी का अंकन केवल एक उदाहरण ( शांतिनाथ संग्रहालय, के० ६८) में हुआ है । बारहवीं शती ई० की इस मूर्ति में यक्ष-यक्षी चतुर्भुज और सर्पफगों के छत्र से युक्त हैं। उनके करों में अभयमुद्रा, सर्प और जलपात्र हैं। यहां भी केवल शीर्षभाग में सर्प फणों के छत्र एवं हाथ में सर्प के प्रदर्शन में ही परम्परा का पालन किया गया है।
अंबिका और चक्रेश्वरी के बाद पद्मावती की ही सर्वाधिक मूर्तियां बनी । खजुराहों में पद्मावती की तोन मूर्तिया हैं । ११वों शती ई० । क्रमांक १४६७) एवं प्रवेशद्वारों पर हैं। पांच या सात सर्पफणों के छत्र वाली पद्मावती का वाहन कुक्कुट है, और हाथों में पाश, अंकुश, पद्म (या जलपात्र) और अभय (या वरद) मुद्रा प्रदर्शित हैं। महावीर
___ अंतिम. जिन महावोर का लांछन सिंह और यक्ष-यक्षी मातंग-सिद्धायिका हैं। खजुराहो में महावीर की ९ से अधिक मूर्तियां हैं। एक उदाहरण के अतिरिक्त अन्य सभी में महावीर. ध्यानमुद्रा में बैठे हैं। सिंह-लांछन सभी में प्रदर्शित है । पर यक्ष-यक्षी युगल केवल : ही उदाहरणों में निरूपित है। महावीर मूर्तियों की एक विशिष्टता यह है कि यहां सिंह लांछन को कुछ मूर्तियों में सिंहासन के मध्य से झांकते हुए दिखाया गया है। इस कारण सिंह की पूरी आकृति के स्थान पर केवल सामने का भाग प्रदर्शित है । सिंह लांछन का इस रूप में चित्रण अन्यत्र दुर्लभ है।
महावीर की प्राचीनतम मूर्ति पार्श्वनाथ मन्दिर के गर्भगृह की दक्षिणी भित्ति पर है। इसमें विभुज यक्ष-यक्षी सामान्य लक्षणों वाले (अभयमुद्रा एवं फल) हैं। मन्दिर २ की मूर्ति (१०९२ ई.) लक्षणों में यक्ष-यक्षी चतुर्भुज है । यक्ष के हाथों में मुद्राकोश, शूल, पद्म और दण्ड है, तथा वाहन सिंह है । सिंहवाहना यक्षी के हाथों में फल, चक्र, पद्म और शंख प्रदर्शित हैं। अन्य उदाहरणों में भी यक्षत्यक्षी दोनों का वाहन सिंह है, और यक्षी के हाथों में, चक्र एवं शंख प्रदर्शित हैं । एक उदाहरण में ( शांतिनाथ संग्रहालय, क्रमांक के. १३) चतुर्भुज यक्ष का वाहन कूर्म है और हाथों में अभयमुद्रा, परशु, पुस्तक एवं फल है। एक अन्य में सिंह पर आरूढ़ चतुर्भुज यश के हाथों में गदा, अस्पष्ट, पद्म एवं मुद्राकोश है। एक अन्य में (के० २८-१) द्विभुज यक्ष का वाहन मेष है, और एक हाथ में शक्ति है। बायाँ हाथ नीचे लटका है। इस प्रकार स्पष्ट है कि खजुराहों में महावीर के यक्ष का कोई एक सातन्त्र स्वरूप नियत नहीं हो सका । पर यक्षी के निरूपण में निश्चित ही चक्रेश्वरी यक्षी के लक्षणों (चक्र एवं शंख) को ग्रहण कर उसके स्वतन्त्र स्वरूप की कल्पना की गयी। यक्ष के
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