Book Title: Sambodhi 1981 Vol 10
Author(s): Dalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 257
________________ अपनश साहित्य में कृष्णकाच्य रामान्य परिचय देने की दृष्टि से कुछ प्रमुख अपभ्रंश कवियों की कृष्णविषयक रचनाओं का 'विवेचन और कुछ विशिष्ट अंश प्रस्तुत किए जाते हैं। इनमें स्वयम्भू, पुष्पदन्त, हरिभद्र और बबल की रचनाएँ समाविष्ट है । धवल की कृति अप्रकाशित होने से उसके बारे में - संक्षेप में कहा है। ४. स्वयम्भू के पूर्व नवीं शताब्दो के अपभ्रंश महाकवि स्वयम्भू के पूर्व की कृष्णविषयक अपभ्रंश रचनाओं के बारे में हमारे पास जो ज्ञातव्य है वह अत्यन्त स्वल्प और ऋटक रूप में है। उसके लिए को आधार मिलते हैं वे इतने है- स्वयम्भूकृत छन्दोग्रन्थ 'स्वयम्भूछन्द' में दिए गए कड उद्धरण और नाम, भोजकृत 'सरस्वतीकण्ठाभरण' में प्राप्त एकाध उद्धरण, हेमचन्द्रकृत 'सिदहेमशद्वानुशासन' के अपभ्रंश विभाग में दिए गए तीन उद्धरण और कुछ अपभ्रंश कृतियोमें किया हुआ कुछ कवियों का नामनिर्देश । ___स्वयम्भू के पुरोगामियों में चतुर्मुख स्वयम्भू की ही कक्षा का समर्थ महाकवि था । और सम्भवतः वह अजैन था । उसने एक रामायणविषयक और एक महाभारतविषयक ऐसे कम से कम दो अपभ्रंश महाकाव्यों की रचना की थी यह मानने के लिए हमारे पास पर्याप्त आधार है । उसके महाभारतविषयक काव्य में कृष्णचरित्र के भी कुछ अंश होना अनिवार्य है । कृष्ण के उल्लेखवाले दो-तीन उद्धरण ऐसे है जिनको हम अनुमान की कृतियों में से लिए हुए मान सकते हैं । किन्तु इससे हम चतुर्मुख की काव्यशक्ति का थोड़ा सा भी संकेत पाने में नितान्त असमर्थ है" । चतुर्मुख के सिवा स्वयम्भू का एक और ख्यातनाम पूर्ववर्ती था । उसका नाम था गोविन्द । 'स्वयम्भूच्छन्द' में दिए गए उनके उद्धरण हमारे लिए अमूल्य हैं। गोविन्द के जो छह छन्द दिए गए है वे कृष्ण के बालचरित विषपक किसी काव्य में से लिए हएशन 'पड़ते हैं। अनुमान है कि इस पूरे काव्य की स्चना केवल रडा नामक द्विभंगी छन्द में हुई होगी। और सम्भवतः उसी काव्य से प्रेरणा और निदर्शन पाकर बाद में हरिभद्र ने मा छन्द में ही अपने अपभ्रश काव्य 'नेमिनाथचरित' की रचना की होगी। उद्धत छन्द कृष्ण और १७. विशेष के लिए देखिए इस लेखक का लेख Caturmukha, one of the earliest Apabhramša epic poets. Journal of the Oriental Institute, Baroda, ग्रन्थ ७, अंक ३, मार्च १९५८, पृष्ठ २१४-२२४ ।। ...'स्वयम्भच्छन्द' ६-७५-१ में कृष्ण के आगमन के समाचार से आश्वस्त होकर मथरारे पौरजनों ने धवल ध्वज फरहगये और इस तरह अपना हदयभाव व्यक्त किया ऐसा अभिप्राय है।६-१२२-१ में कृप, कर्ण, और कलिंगराज को एवं अन्य सुभटों को पराजित करके अर्जन कृष्ण को जयद्रथ का पता पूछता है ऐसा अभिप्राय है। इनके अलावा ३... और ६.३५-१ में अर्जुन का निर्देश तो है किन्तु उसके साथ कर्ण का उल्लेख है. नहीं कृष्ण का और मुख्य बात तो यह है कि ये पद्य चतुर्मुख के ही मानने के लिए कोई निश्चित आधार नहीं है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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