Book Title: Sambodhi 1981 Vol 10
Author(s): Dalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 270
________________ हरिवल्लभ भायाणी से विशाल गोवर्धन पर्वत उठाया और लोगों को धृति बंधाई । अंधकार से भरा दुभा पातालविवर प्रकट हुआ, जिस में फणीन्द्रों के समूह फुफकारते थे, विष उगलते थे, सलसकते और धुमराते थे । त्रस्त होकर हिरन के शिशु नासने लगे । कातर बनचर गिर कर चिल्लाने लगे । हिंसक चांडालोंने चंद शर फेंक दिये । परवश तापसलोग भयचर्जर हो । उठे। गोओं का वर्धन करने वाले गोवर्धनने राज्यलक्ष्मी का भार असा समज कर गिरि . गोवर्धन उठाया ।' ७. हरिमद्र और धवल पुष्पदन्त के बाद अपभ्रंश कृष्णकाय की परम्परा में दो और कवि उल्लेखाई है । वे हैं हरिभद्र और घवल । धवलको कृति अभी तो अप्रकाशित है । फिर भी एकाध हस्तलिखित प्रति के आधार पर यहां उसका कुछ परिचय दिया जाता है । हरिभद्र हरिभद्र का 'नेमिनाहचरिउ' (११६० में रचित) प्रधानतः रडा छन्द में निबद्ध ३३०० छन्दों से भी अधिक विस्तार का महाकाव्य है। उनसे ६५३ छन्द समग्र कृष्णचरित: को-कृष्णजन्म से ले कर द्वारावतीदहन तक-दिया गया है । शताधिक छन्दों में कृष्णजन्म से कंसवध तक की कथा संक्षेप में दी गई है। हरिभद्र का छन्दःप्रभुत्व प्रशंसनीय है। प्रसंगवर्णन. व्यक्तिचित्र, संभाषण इत्यादि के लिये वह अत्यन्त आसानी से रखी का प्रयोग करता है। सर्वत्र प्रासादिकता प्रतीत होती है। कृष्णचरित में कतिपय स्थलों पर वर्णनमें उत्कटता सभी मल्लयुद्ध के प्रसंग वर्णन में हरिमद्रकी कवित्वशक्ति का हम कुछ परिचय पाते हैं। कृष्ण की हत्या के लिए भेजे जाने वाले वृषभ, खर, तुरग और मेष के चित्र भी रह रेखाओं से अंकित किए गए हैं। धवल कषि धवल का 'हरिवंशपुराण' ग्यारहवीं शताब्दी के बाद की रचना है । समय ठीक निर्णीत नहीं हुआ है फिर भी 'हरिवंशपुराण' को भाषा में आधुनिकता के चिन्ह सुस्पष्ट है। उसकेको पद एवं प्रयोगों में हम आदिकालीन हिन्दी के संकेत पाते हैं । काव्यत्व की दृष्टि से भी धवल अपभ्रश कषियों की द्वितीय-तृतीय श्रेणि में कहीं है। हितोपदेश और अर्मचौध 'हरिव'च' की शैली में प्रगट हैं । फिर भी धवल के 'हरिव'श' के कुछ अंशों मे रे सन्धियों के विस्तार के फलस्वरूत्र और विषय एवं रचनाशैला की सुदीर्घ वेरी के फलस्वरूप, काश्यत्व का प॑श अवश्य है । और कुछ अंशो की विशिष्टता की अय भाषा और वर्णन में प्रविष्ट समसामयिक तत्वों को देना होगी। ... - अलकृत हरिवंश की ५३, ५४ और ५५ इन तीन सन्धियों में कृष्ण जन्म से ले करें र तक की कथा है । कथा के निरूपण में और वर्णनों में बहुत कुछ रूढिं का ही अनु स्क फिर कही पर कविने अपनी राह लिया है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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