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श्रीपार्श्वनाथचरितमहाकाव्यं आन्वीक्षिक्यां सुप्रगल्भौ नितान्तं मीमांसायां लब्धवर्णो सवर्णो । सायं तत्त्वं धर्मशास्त्र पुराणं ज्ञात्वा विद्यास्नातकत्वं प्रयातौ ॥१३॥ ब्रह्मविद्यासु निष्णातौ ब्रह्मकर्मसु कर्मठौ । नीतिशास्त्रविदो ज्ञात्वा राज्ञा तौ मन्त्रिणौ कृतौ ॥१४॥ विशेषकम् ।। अन्यदा कमठः पापस्तारुण्यैश्चर्यगर्वितः । प्रमादमदिरोन्मादमत्तो मदनविहलः ॥१५॥ निजानुजवधूं वीक्ष्य रूपलावण्यशालिनीम् । प्रवातेन्दीवराधीरविप्रेक्षितलोचनाम् ॥१६॥
बन्द्रमण्डलसङ्काशवदनथुतिविभ्रमाम् । मृदुबाहुलतां चारुकदलीस्निग्धसक्थिकाम् ॥१७॥ घनाञ्जननिभस्निग्धमुग्धकुन्तलवल्लरीम् । कृशोदरी च सुदतीं पीनतुङ्गपयोधराम् ॥१८॥ स्वकरहिनखौषश्रीनिर्जिताशोकपल्लवाम् ।
चकमे कमनीयां तां कामरागो हि दुस्त्यजः ॥१९॥ पञ्चभिः कुलकम् ।। (१३) आन्वीक्षिकी में वे पूर्णतया चतुर थे, मीमांसा शास्त्र में ख्या तेप्राप्त थे, सांख्यतत्त्व, धर्मशास्त्र तथा पुराणों को पढ़कर उन विद्याओं के स्नातक बन गये थे। (१४) ब्रह्मविद्या (-वेदान्त) में निष्णात तथा ब्रह्मकर्म में कुशल, नीतिशास्त्रों के ज्ञाता उन दोनों को जानकर राजा ने उन्हें मन्त्रिपद से सुशोभित कर दिया ॥ (१५) बड़ा भाई कमठ पापी था । युवावस्था तथा ऐश्वर्य से गर्वित था। एक बार वह प्रमाद रूप मदिरा के उन्माद से उन्मत्त तथा कामवासनाओं से विह्वल हो गया ॥ (१६-१९) अपने छोटे भाई को रूपसौन्दर्यशालिनी और कमनीय पत्नी को देखकर वह उसके प्रति कामासक्त बन मया । सचमुच काम से मुक्त होना अत्यन्त कठिन है। वह स्त्री वायु के द्वारा हिलाये हुए नीलकमल की भांति चञ्चल दृष्टिवाली थी, उसके मुख को शोभा चन्द्रमण्डल जैसी थी, उसकी बाहुलताएँ कोमल थीं, उसकी जाँचें कदली के समान स्निग्ध थीं, उसको कुन्तललताएँ सघन काजल के समान स्निग्ध और मुग्ध थी, उसकी कमर पतलो थी, उसके दाँत सुन्दर थे, उसके स्तन पुष्ट तथा उन्नत थे, उसने अपने हाथ और पैर के नखों की कान्ति से अशोक पल्लव की शोभा को परास्त किया था।
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