Book Title: Sambodhi 1981 Vol 10
Author(s): Dalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 254
________________ ५२ हरिवल्लभ भायाणी कृष्ण के परक्रमों की बात सुनकर उनको देखने के लिए देवकी बलराम को सार्थ लेकर मोपूजा को निमित्त बनाकर गोकुल आई और गोपवेश कृष्ण को निहारकर वह आनन्दित हुई और मथुरा वापस गई । बलराम प्रतिदिन कृष्ण को धनुविद्या और अन्य कलाओं की शिक्षा देने के लिए मथुरा से आता था। बालकृष्ण गोपकन्याओं के साथ रास खेलते थे । गोपकन्याएं कृष्ण के स्पर्शसुख के लिए उत्सुक रहती थीं, किन्तु कृष्ण स्वयं निर्विकार थे। लोग कृष्ण की उपस्थिति में अत्यन्त सुख का और उनके वियोग में अत्यन्त दुःख का अनुभष करते थे । - एक बार. शंकित होकर कंस स्वयं कृष्ण को देखने को गोकुल भाया । यशोदा ने. पहले से ही कृष्ण को दूर वन में कहीं भेज दिया। वहां पर भी कृष्णने ताडवी नामक .. पिशाची को मार भगाया एवं मण्डप बनाने के लिए शाल्मलि की लकड़ी के अत्यन्त भारी स्तम्भों को अकेले हो उठाया । इससे कृष्ण के सामथ्र्य के विषय में यशोदा मिःशक हो गई .. और कृष्ण को वापिस लौटा लिया । मथुरा वापिस आकर कंस ने शत्रुका पता लगाने के लिए ज्योतिषी के कहने पर .. ऐसो घोषणा कर दी कि जो मेरे पास रखी गई सिंहवाहिनी नागशय्या पर आरूढ हो सके, . अजितजय धनुष्य को चढ़ा सके एवं पांचजन्य शंख फूक सके उसको अपनी मनमानीचीच प्रदान की जाएगी। अनेक राजा ये कार्य सिद्ध करने में निष्फल हुए । एक बार जीषधशा का भाई भानु कृष्ण का बल देखकर उनको मथुरा ले गया और वहाँ कृष्ण ने तीनों पराक्रम सिद्ध किए। इससे कसकी शका प्रबल हो गई। किन्तु बलरामने शीघ्र ही कृष्ण को ब्रज भेज दिया। - कृष्ण को विनाश करने के लिए कंस ने गोप लोगो को आदेश दिया कि यमुना के हद में से कमल ला कर भेंट करें । इस हद में भयंकर कालियनाग रहता था। कृष्ण ने हद में प्रवेश कर के कार्यालय का मर्दन किया और वह कमल लेकर बाहर आया" । जब कंस ९. त्रिच. के अनुसार कृष्ण के पराक्रमों की बात फैलने से वसुदेव ने कृष्ण की सुरक्षा के लिए बलराम को भी नन्दयशोदा को सौंप दिया । उनसे कृष्ण ने विद्याएं सोखी । १०. त्रिच० के अनुसार जो शाङ्ग धनुष्य चढ़ा सके उसको अपनी बहन सत्यभामा देने की घोषणा कंसने की । और इस कार्य के लिए कृष्ण को मथुरा के जाने वाला कृष्ण का सौतेला भाई अनावृष्ठि था । ११. त्रिच्० में कालियमर्दन का और कमल लाने का प्रसंग कंसकी मल्लयुद्धघोषणा के बाद आते त्रिच० के अनुसार केस गोपों को मल्लयुद्ध के लिए आने का कोई आदेश नहीं भेजता है। कंस ने जो मल्लयुद्ध के उत्सव का प्रबन्ध किया था उसमें संमिलित होने के लिए कृष्ण और बलराम कौतुकवश स्वेच्छा से चलते हैं । जाने के पहले जब कृष्ण स्नान के लिए ना में प्रवेश करते है तब कंस का मित्र कालिय डसने आता है। तब कृष्ण उसको नाथ कर उसके उपर आरूढ होकर उसे खुब घुमाते हैं और निर्जीव सा करके छोड़ देते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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