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खजुराहो की जैन मूर्तियां १८. खजुराहो के चतुर्भुज, दूलादेव एवं कुछ अन्य हिन्दू मन्दिरों पर भी समान विवरणों.
वाली आव गोमुख आकृतियां उत्कीर्ण हैं । इनकी भुजाओं में वरदमुद्रा (या वरदाक्ष)
त्रिशूल (या सक), पुस्तक-पद्म और जलपात्र प्रदर्शित है। १९. इस लेख में हाथो के आयुधों की गणना सर्वदा घड़ी की सई की गति के क्रम में
निचले दाहिने हाथ से प्रारम्भ करके की गई है। २०. दिगंबर परम्परा में १६ महाविद्याओं के सामूहिक चित्रण का यह एकमात्र संभवित
२१. उत्तर मित्ति की दो रयिकाओं के बिंब संप्रति गायब हैं । २२. द्रष्टव्य, तिवारी, मारुति नन्दन प्रसाद, "खजुराहो के आदिनाथ मन्दिर के प्रवेश द्वार
की मूर्तियाँ", अनेकान्त, वर्ष २४, अ० ५, पृ. २१८-२१. २३. कनिंघम, ए., आर्किअलाजिकल सर्वे ओव इण्डिया, ऐनुअल रिपोर्ट, १८६४
६५, खं० २, पृ० ४३४. २४. जायसवाल, के. पी., "जैन इमेन ऑष मौर्य पीरियड", जर्नल बिहार, उड़ीसा
रिसर्च सोसायटी, खं० २३,. भाग १, १९३७, पृ० १३०-३२. २५, शाह, यू० पी०, स्टडोज इन जैन आर्ट, बनारस, १९५५, पृ० ८-९. २६. प्रसाद, एच०के०, "जैन ब्रोन्जेज इन दि पटना म्यूजियम", महावीर जैन विद्यालय
गोल्डेन जुबिलो वाल्यूम, बम्बई, १९६८, पृ. २७५-८०. २७. ये अष्ट प्रातिहार्य अशोक वृक्ष, चामरधर सेवक (चावर), मालाधर गन्धर्व (देवपुष्पवृष्टि),
- दिव्यध्वनि, सिंहासन, त्रिछत्र, देवदुन्दुभि एवं प्रभामण्डल हैं। २८. विस्तार के लिए द्रष्टव्य, चन्दा, आर० पी०, 'जैन रिमेन्स एट राजगिर', आर्किअ
लाजिकल सर्वे ऑव इण्डिया, एनुअल रिपोर्ट, १९२५-२६, पृ० १२५-२६; तिवारी, मारुतिनन्दन प्रसाद, “एन अन्पछिलश्ड जिन इमेज इन दि भारत कला भवन, वासपसी", विश्वेश्वरानन्द इण्डोलोजिकल जर्नल, ख० १३, अं० १-२, पृ
शाह, यू० पी० अकोटा ब्रोन्जेज, बम्बई, १९५९, पृ० २८-२९. २९. रूपमण्डन, ६.२५-२७. ३०. यहाँ उल्लेखनीय है कि खजुराहो के देवी जगदंबी एवं विश्वनाथ मन्दिरों के भधि.
ठानों पर भी जिनों की दो लघु मूर्तियां बनी है। ये मूर्तियां क्रमशः उत्तरी और दक्षिणी अधिष्ठान-पर है।. दोनो हो उदाहरणों में मध्य की भ्यानस्थ जिन मर्ति के दोनों ओर कायोत्सर्ग. मुद्रा में दो जिन खड़े हैं । इनमें लांछन, प्रातिहार्य या यक्षयक्षी का अंकन नहीं हुआ है। हिन्दू मन्दिरों पर इन जिन मूर्तियों का उत्कीर्णन स्पष्टतः खजुराहो में हिन्दू एवं जैन संप्रदायों के मध्य के अच्छे सम्बन्धों का परिचायक है।
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