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मारुतिनन्दन प्रसाद तिवारी
आदिनाथ मंदिर के मण्डोवर की १६ रथिकाओं में १६ देवियों की मूर्तियां उत्कीर्ण है। ये मूर्तियां प्रतिमाविज्ञान की दृष्टि से विशेष महत्व की है । भिन्न आयुधों एवं वाहनों 'पाली स्वतन्त्र देवियों की संभावित पहचान १६ महाविद्याओं से की जा सकती है। ज्ञातव्य है कि २४ मिनों और उनके यक्ष-यक्षी युगलों के बाद जैन देवकुल में विद्याओं को हो सर्वाधिक महत्व प्रदान किया गया । प्रारम्भिक ग्रन्थों में विद्याओं के अनेक उल्लेख है। इन्हीं विद्याओं में से १६ प्रमुख विद्याओं को लेकर आठवों-नबीं शती ई० में १६ महा विद्याओं की सूची नियत हुई, जिसके प्रारम्भिकतम उल्लेख बप्पभट्टिसूरि कृत चतुर्विशतिका (७४३-८३८ ई.) एवं शोभनमुनिकृत स्तुतिचतुर्विशतिका (९७३ ई०) में है। आठवींनवीं शती ई. में ही शिल्प में भी इनका निरूपण प्रारम्भ हो गया, जिसके प्रारम्भिकतम उदाहरण ओसिया के महावीर मन्दिर पर देखे जा सकते हैं। श्वेताम्बर स्थलों पर नवीं से बारहवीं शती ई० के मध्य इसका चित्रण विशेष लोकप्रिय रहा है। दिगंबर स्थलों पर महाविद्याओ का अंकन नहीं हुआ है । श्वेतांबर स्थलों पर १६ महाविद्याओं के सामूहिक चित्रण के उदाहरण कुंभारिया के शांतिनाथ मन्दिर (११ वीं शती ई०) विमलवसही (दो समूह : रंग मण्डप एव देवकुलिका ४१. १२ वीं शती ई०) एवं लूणवसही (रंगमण्डप१२३. ई.) से प्राप्त होते हैं ।
खजुराहो के आदिनाथ मन्दिर के मण्डोवर को रथिका मूर्तियों में देवियां ललितमुद्रा में आसीन या त्रिभंग में खड़ी हैं; और चार से आठ भुजाओं वाली हैं । उत्तर और दक्षिण की भित्तियों पर ७-७, और पश्चिम की भित्ति पर दो देवियां निरूपित हैं "। सभी उदाहरणों में रथिका बिंब काफी विरूप हैं, जिसकी वजह से उनको पहचान कठिन हो गयी है। केवल कुछ ही देवियों के निरूपण में पश्चिम भारत के लाक्षणिक ग्रंथों के निर्देशों का
आंशिक अनुकरण किया गया है। सभी देवियां वाहन से युक्त हैं. और उनके शीर्षभाग में नघ जिन आकृतियां उत्कीर्ण है। देवियों के स्कन्धों के ऊपर सामान्यतः अभयमुद्रा, पद्म, पद्म
और जलपात्र से युक्त देवियों की दो छोटी मूर्तियां उत्कीर्ण हैं । हमने दिगम्बर ग्रंथों (प्रतिष्ठासारोद्धार-आशाधरकृत एवं प्रतिष्ठासारसंग्रह-वसुनन्दिकृत) से तुलनात्मक अध्ययन के आधार पर कुछ देवियों की संभावित पहचान को प्रयास किया है । वाहनों या कुछ विशिष्ट आयुधों, या फिर दोनों के आधार पर जांबूनदा, गौरी, काली, महाकाली, गान्धारी, अच्छुप्ता एवं 'वैरोट्या महाविद्याओं की पहचान की गयी है।
__ मन्दिर के प्रवेशद्वार पर वाहन से युक्त चतुर्भुज देवियां निरूपित हैं । इनमें केवलं गजलक्ष्मी, चक्रेश्वरी, अंबिका एवं पद्मावतो की ही निश्चित पहचान सम्भव है २९१ दहलीज पर दो'चतुर्भुज पुरुष आकृतियां ललितमुद्रा में उत्कीर्ण हैं। इनकी तीन अवशिष्ट भुजाओं में अभयमुद्रा, परशु एवं चक्राकार पद्म है । देवता की पहचान सम्भव नहीं है । दहलीज के बायें छोर पर गजलक्ष्मी की मूर्ति है । दाहिने छोर पर पदमासना देवी की मूर्ति है। तीन सर्पफणों के छत्र वाली देवी का वाहन कर्म है। देवी के एक अवशिष्ट हाथ में पद्म है। देवी यक्षी पद्मावती हो सकती है। प्रवेशद्वार पर मकरवाहिनी गंगा और कर्म वाहिनी यमुना तथा १६ मांगलिक स्वप्न भी उत्कीर्ण हैं।
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