________________
मारुतिनन्दन प्रसाद तिवारी
मर्तिया. अपनी मनमोहक भावभंगिमाओं एवं शिल्पगत विशेषताओं के कारण विश्वप्रसिद्ध है। ज्ञातव्य है कि अप्सरा मूर्तियों का उत्कीर्णन खजुराहो के सभी मन्दिरों में विशेष लोकप्रिय था।
नीचली दोनों पक्तियों की देवयुगल' एवं स्वतन्त्र मूर्तियों में देवता सदैव चतुर्भुव है। पर देवताओं की शक्तियां सर्वदा द्विभुजा हैं । सभी मूर्तियां त्रिभंग में खड़ी है। इन मूर्तियों में शक्ति की एक भुजा आलिंगन मुद्रा में है और दूसरी में दर्पण या पद्म है । तात्पर्य यह कि विभिन्न देवों के साथ पारंपरिक शक्तियों, यथा विष्णु के साथ लक्ष्मी, ब्रह्मा के साथ ब्रह्माजी एवं शिव के साथ पार्वती, के स्थान पर सामान्य एवं व्यक्तिगत विशेषताओं से रहित देवियाँ निरुपित हैं। दूसरी ओर देवता पारम्परिक लक्षणों वाले हैं। यहां यह उल्लेख प्रासगिक होगा कि विभिन्न देवताओं का शक्तियों के साथ आलिंगन मुद्रा में अंकन जैन परम्परा के विरुद्ध है । जैन परम्परा में कोई भी देवता कभी अपनी शक्ति के साथ नहीं निरूपित है, फिर शक्ति के साथ और वह भो आलिंगन मुद्रा में उनके चित्रण का प्रश्न ही नहीं उठता"। ___ जंघा की स्वतन्त्र देवमूर्तियों में शिव (१९), विष्णु (१०), एवं ब्रह्मा (१) की मूर्तियां हैं । देवयुगलों में शिव (९), विष्णु (७), ब्रह्मा (१), अग्नि (१), कुबेर (१), राम (१), एवं बलराम (१) की मूर्तियां हैं। मंदिर के दक्षिणी शिखर पर राम कथा से सम्बन्धित एक दृश्य उत्कीर्ण है। जिसमें हनुमान को अशोकवाटिका में बैठी क्लांतमुख सीता को राम की अंगूठी देते हुए दिखाया गया है" । जैन यक्षी. अंबिका (२-दक्षिणी जंघा एवं शिखर) एवं चक्रेश्वरी (१) तथा सरस्वती (६), लक्ष्मी (५) एवं त्रिमुख ब्रह्माणी (३) की भी मूर्तियां उत्कीर्ण है। जिन, अंबिका एवं चक्रेश्वरी की मूर्तियों के अतिरिक्त मण्डोवर की अन्य सभी मूर्तियां हिन्दू देवकुल से सम्बन्धित और प्रभावित हैं। उत्तरी एवं दक्षिणी शिखर पर कामक्रिया में रत दो युगल भी चित्रित है । यहाँ उल्लेखनीय है कि खजुराहो के दुलादेव, लक्ष्मण, कन्दरिया महादेव, देवी जगदंबा एवं विश्वनाथ मन्दिरों के विभिन्न भागों पर अकीर्ण कामक्रिया से सम्बन्धित मूर्तियों में अनेकशः मुण्डित मस्तक वाले निर्वस्त्र एवं मयूरपिच्छिका लिये हए जैन साधुओं को रतिक्रिया की विभिन्न मुद्राओं में दरशाया गया है-जो तत्कालीन धार्मिक एवं सामाजिक व्यवस्था में दिगंबर जैन साधुओं एवं संप्रदाय की स्थिति के विवेचन के लिए एक गंभीर प्रश्न चिह्न उपस्थित करता है ।
गर्भगृह की भित्ति पर अष्टदिक्पालों, जिनों, बाहुबली एवं शिव (८) की मूर्तियां है। उत्तरंगों पर द्विभुज नवग्रहों (३ समूह) और द्वार शाखाओं पर मकरवाहिनी गंगा और कूर्म-' वाहिनी यमुना की स्थानक मूर्तियां है। मण्डप की भित्ति की जिन मूर्तियों में लांछन और यक्ष-- यक्षी नहीं उत्कोर्ण है। पर गर्भगृह को भित्ति की जिन मूर्तियों में लांछन, अष्टप्रतिहार्य एवं यक्ष-.. यक्षी आमूर्तित हैं। यक्ष-यक्षी सामान्यतः अभयमुद्रा (या पद्म) एवं फल (या जलकलश) से युक्त । है । तात्पर्य यह कि जिनों के साथ पारंपरिक यक्ष-यक्षी का अंकन नहीं हुआ है। लांछनों. के आधार पर केवल अभिनंदन (कपि लांछन), पुष्पदंत (मकर लांछन) चन्द्रप्रभ (अर्धचन्द्र • लांछन) एवं महावीर (सिंहलांछन) की पहचान सम्भव है । मन्दिर की जिन मूर्तियां मूर्ति बैज्ञानिक दृष्टि से प्रारम्भिक कोटि की है ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org