Book Title: Sambdohi Times Chandraprabh ka Darshan Sahitya Siddhant evam Vyavahar
Author(s): Shantipriyasagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 12
________________ धर्मगरुओं ने सम्मिलित होकर अनेकता में एकता का स्वर बुलंद किया श्री चन्द्रप्रभ का प्रभावी व्यक्तित्व है। श्री चन्द्रप्रभ के जीवन-वृत्त पर दृष्टिपात करने से एक अलग तरह श्री चन्द्रप्रभ आध्यात्मिक गुरु हैं। उन्होंने संबोधि ध्यान साधना के । के व्यक्तित्व का रूप निखर कर आता है। डॉ. नागेन्द्र ने लिखा है, मार्ग को, भारतीय अध्यात्म एवं ध्यान योग साधना को देश-विदेश के "सचमुच उनका व्यक्तित्व एवं कृतित्व बहुआयामी है, उनका साहित्य कोने-कोने तक पहुँचाया है। वे अध्यात्म के अंतर्गत मौन, ही उनके व्यक्तित्व का दर्पण है। व्यक्ति कैसा है यह उसके कृत्यों से या आभामण्डल, वीतरागता, ध्यान-साधना, योग-रहस्य, अनुप्रेक्षा व कृतियों से उजागर होता है।" श्री चन्द्रप्रभ शिखर पुरुष हैं। उनकी विपश्यना, मृत्यु या मुक्ति, भेद-विज्ञान जैसे विषयों पर श्रेष्ठ मार्गदर्शन आध्यात्मिक साधना एवं साहित्यिक विद्वत्ता से यह बात उजागर होती देते हैं। श्री चन्द्रप्रभ के तकरीबन 1000 से अधिक प्रवचनों के अनुपम है। उनका जीवन बहुमुखी व्यक्तित्व को समेटे हुए है। उनकी कृतियाँ वीडियो सेट जारी हुए हैं। उनका 'माँ की ममता हमें पुकारें' प्रवचन भी महान हैं एवं उनका व्यक्तित्व भी। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित हुआ है। श्री चन्द्रप्रभ के साहित्य के अवलोकन से यह ज्ञात होता है कि वे सम्पूर्ण देश में पदयात्रा एवं चातुर्मास महान जीवन द्रष्टा, मानवता के महर्षि, ज्ञान के शिखर पुरुष, विशाल भारत में पदयात्रा का बहुत बड़ा महत्त्व रहा है। जैन धर्म एवं साहित्य के सर्जक. शोध मनीषी, आगम-ज्ञाता, गीता-मर्मज्ञ, देश के परम्परा के लगभग सभी साधु-साध्वियाँ पैदल यात्रा करते हैं। गाँव- शीर्षस्थ प्रवचनकार, मनोवैज्ञानिक शैली के जनक, हर समस्या के गाँव तक धर्म की गंगा बहाते हैं । हजार परिवर्तन होने के बावजूद जैन तत्काल समाधानकर्ता, जीवंत काव्य के रचयिता, शब्दों के कमाल के धर्म में यह परम्परा अभी भी अक्षुण्ण है। श्री चन्द्रप्रभ मानवीय कल्याण जादूगर, सहज जीवन के मालिक, सौम्य व्यवहार के धनी, शिष्टता की पवित्र भावना से अब तक देश के 20 राज्यों की यात्रा करते हुए और मर्यादा की जीवंत मूर्ति, प्रेम की साक्षात प्रतिमा, परम मातृभक्त, लगभग तीस हजार किलोमीटर पैदल चल चुके हैं। उनका सान्निध्य भ्रातृत्व प्रेम की अनोखी मिसाल, पारिवारिक प्रेम एवं सामाजिक गुजरात - अहमदाबाद, भावनगर, पालीताणा, सूरत, बड़ौदा, भरूच, समरसता के अग्रदूत, राष्ट्रीय चेतना के उन्नायक, निष्काम कर्मयोग के नवसारी, महाराष्ट्र - पूना, सतारा, बोम्बे, कोल्हापुर, कर्नाटक - प्रेरक.क्रांति के पुरोधा, धर्म को युग के अनुरूप बनाने के प्रेरक, सफल बैंगलोर, हुबली, बेल्लारी, बेलगाँव, मैसूर, तमिलनाडू - चैन्नई, मनोचिकित्सक एवं आरोग्यदाता, सफलता के गुर सिखाने वाले पहले कोयम्बटूर, पांडिचेरी, कडलूर, नीलगिरि की पहाड़ियाँ, वैल्लूर, इरोड़, संत, सत्य के अनन्य प्रेमी, सर्वधर्मसद्भाव के प्रणेता, आध्यात्मिक सैलम, आंध्रप्रदेश - विशाखापट्टनम, नैल्लूर, पश्चिम बंगाल - चेतना के धनी, मौन-महाव्रती, संबोधि साधना मार्ग के प्रवर्तक, कोलकाता, वीरभूम, खड़गपूर, सेथिया, मायापुरम, बिहार - शांतिदूत, गीतकार एवं आम जनता के करीब हैं। उनके व्यक्तित्व के सम्मेतशिखर, पावापुरी, बौद्धगया, क्षत्रिय कुण्ड, वैशाली, उत्तरप्रदेश- महत्त्वपूर्ण पहलू इस प्रकार हैं। बनारस, वाराणसी, इलाहाबाद, आगरा, कानपुर, अलीगढ़, मथुरा, __ महान जीवन-द्रष्टा उत्तरांचल - ऋषिकेश, हरिद्वार, हिमालय, गंगोत्री, उत्तरकाशी, टेहरी, श्री चन्द्रप्रभ महान जीवन-द्रष्टा हैं । वे शास्त्रों से भी ज्यादा जीवन हस्तिनापुर, राजस्थान - जयपुर, जोधपुर, बीकानेर, बाड़मेर, के अध्ययन को महत्त्व देते हैं। उन्होंने जीवन की बारीकियों का भीलवाड़ा, उदयपुर, कोटा, पाली, चित्तौड़गढ़, निम्बाहेड़ा, अजमेर, अध्ययन किया है जो उनके साहित्य में स्पष्ट रूप से नजर आता है। नाकोड़ा, नागौर, बिजयनगर, ब्यावर, मध्यप्रदेश - नीमच, इंदौर, उन्होंने जीवन को सबसे मूल्यवान तत्त्व बताया है। उन्होंने जीवन को रतलाम, उज्जैन, झाबुआ, जावरा, मंदसौर, आस्ट, दिल्ली, हरियाणा वीणा के तारों की तरह साधने की प्रेरणा दी है। वे अतिभोग के साथ - फरीदाबाद, गुड़गाँव, झारखंड - शिखरजी, गिरडीह आदि नगरोंमहानगरों को मिला। ये देश-प्रदेश ऐसे हैं जहाँ श्री चन्द्रप्रभ के प्रवचनों अतित्याग के भी खिलाफ हैं। उन्होंने धरती का पहला शास्त्र मनुष्य का की विशाल जनसभाएँ हुईं, इन स्थानों पर उनका ज्यादा दिनों तक जीवन, दूसरा शास्त्र जगत, तीसरा शास्त्र प्रकृति और चौथा शास्त्र धर्म अध्यात्म की पवित्र किताबों को माना है। वे कहते हैं, "सीखने, पाने रुकना हुआ। इनके अलावा भी ऐसे सैकड़ों क्षेत्र हैं जहाँ उनकी और जानने की ललक हो तो सृष्टि के हर डगर पर वेद, कुरआन, प्रवचन-सभाएँ तो नहीं हुईं, पर श्रद्धालुओं ने उनके सान्निध्य का लाभ बाइबिल के पन्ने खुले और बोलते हुए नजर आ जाएँगे।" जरूर उठाया। श्री चन्द्रप्रभ ने जीवन सापेक्ष धर्म को जन्म देने के लिए जीवनश्री चन्द्रप्रभ के द्वारा अब तक किए गए चातुर्मास इस प्रकार है - सन् 1980 में पालीताणा, 1981 में अहमदाबाद, 1982 में दिल्ली, जगत के सार-असार दोनों पहलुओं को समझना आवश्यक माना है। उन्होंने अपना अनुभव बताते हुए लिखा है, "कोई अगर मुझसे पूछे कि 1983 व 1984 में वाराणसी, 1985 में कलकत्ता, 1986 व 1987 में। आपका धर्म और धर्मशास्त्र कौन-सा है, तो मेरा सीधा-सा जवाब होगा मद्रास, 1988 में पूना, 1989 में उदयपुर, 1990 में जोधपुर, 1991 में - जो धर्म मनुष्य का होता है, वही मेरा धर्म है और जिस प्रकृति ने इतने ऋषिकेश, 1992 में आगरा, 1993 में इंदौर, 1994, 1995 व 1996 में विचित्र और अद्भुत जगत की रचना की है, यह जगत और जगत पर जोधपुर, 1997 में बीकानेर, 1998 में नागौर, 1999 में जयपुर, 2000 में अजमेर, 2001 में श्री नाकोड़ा तीर्थ, 2002 में नीमच, 2003 में जयपुर, पल्लवित होने वाला जीवन ही मेरा शास्त्र है। किताबों के नाम पर मैंने ढेरों किताबें पढ़ी हैं, न केवल पढ़ी हैं, वरन् ढेरों ही मैंने कही और 2004 में भीलवाड़ा, 2005 में बाड़मेर, 2006 में जोधपुर, 2007 में लिखी हैं, पर कोई अगर कहे कि मुझे सबसे सुंदर किताब कौन-सी भीलवाड़ा, 2008 में जोधपुर, 2009 में इंदौर, 2010 में अजमेर, 2011 लगी है तो मैं कहूँगा कि इस जगत से बढ़कर कोई श्रेष्ठ किताब नहीं है में उदयपुर, 2012 में जोधपुर। 12 संबोधि टाइम्स Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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