Book Title: Sambdohi Times Chandraprabh ka Darshan Sahitya Siddhant evam Vyavahar
Author(s): Shantipriyasagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 11
________________ बैठा हूँ। मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि इनका क्या वायवा लूँ।" एवं कॅरियर-निर्माण के अंतर्गत व्यक्तित्व विकास, लाइफ मैनेजमेंट, गुरुजी ने थपथपाई पीठ - नागेश्वर तीर्थ में सन् 1982 में आत्मविश्वास, प्रतिभा और किस्मत से जुड़े विषयों को छूते हैं। ये दादावाड़ी की प्रतिष्ठा का महोत्सव था। इस दौरान जैन धर्म की महान प्रवचन युवा पीढ़ी के लिए रामबाण औषधि का काम करते हैं। उनकी साध्वी विचक्षणश्री जी महाराज की प्रथम पुण्य तिथि का कार्यक्रम था। मायूसी और निराशाएँ छुट जाती हैं। व्यक्ति अपने आपको आचार्य श्री जिन उदयसागर सूरि जी महाराज, आचार्य श्री जिन आत्मविश्वास से परिपूर्ण महसूस करता है। उन्होंने स्वास्थ्य-निर्माण कांतिसागर सूरी जी महाराज, मुनि श्री जयानंद जी, साध्वी श्री चन्द्रप्रभा के अन्तर्गत चिंता-तनाव मुक्ति, नशे से छुटकारा, घरेलु चिकित्सा, श्री जी महाराज, साध्वी मणिप्रभा श्री जी महाराज आदि सभी के मानसिक एकाग्रता, खुशहाली, योग और ध्यान पर अनेक प्रवचन दिए प्रवचन हुए। 12 बज चुके थे और कार्यक्रम समाप्ति की ओर था। तभी हैं। स्वास्थ्य से जुड़ा उनका समसामयिक विवेचन शारीरिक एवं साध्वी श्री चन्द्रप्रभा महाराज ने आचार्यजी से निवेदन किया कि मानसिक चिकित्सा का काम करता है। उनके विचारों से प्रभावित चन्द्रप्रभ जी को इस अवसर पर बोलवाया जाए। पहले तो मना किया होकर अब तक लाखों लोग दुव्यर्सनों को जीतने में सफल हए हैं और गया, पर जब दो बार आग्रह किया गया तो आचार्यजी ने श्री चन्द्रप्रभ हजारों लोग शारीरिक-मानसिक रूप से पूर्णत: स्वस्थ हुए हैं। को भी बोलने के लिए कहा। आचार्यजी का आदेश था, उन्हें बोलना श्री चन्द्रप्रभ के परिवार-निर्माण पर अति रसभीने, भावुक और पड़ा। वे लगभग 25 मिनट बोले होंगे, आचार्यजी चलते प्रवचन में खड़े मार्मिक प्रवचन होते हैं, जिससे व्यक्ति की आत्मा हिल जाती है। वे हुए और चन्द्रप्रभ की पीठ थपथपाते हुए कहा, "तुम्हारा प्रवचन पारिवारिक उत्थान के अंतर्गत बच्चों का भविष्य, रिश्तों में मिठास, सुनकर तो हम सब आत्मविभोर हो गए हैं। जरूर तुम बड़े होकर मेरा वसीयत लेखन,बुढ़ापा, मित्र, माँ की ममता, घर-परिवार आदि विषयों नाम रोशन करोगे।" श्री चन्द्रप्रभ कहते हैं कि गुरु के ये वचन मेरे लिए पर मार्गदर्शन देते हैं। उनके प्रवचनों के प्रभाव से अब तक हजारों टूटे आशीर्वाद के समान हैं। उन्होंने ऐसा करके मेरा उत्साह बढ़ाया। परिवार जुड़े हैं, रिश्तों में कटुताएँ कम हुई हैं, माता-पिता बच्चों के प्रवचन-प्रभाकर की दी उपाधि - सन् 1984 की बात है। संस्कारों के प्रति जागरूक हुए हैं, वृद्ध लोगों में उत्साह का संचार हुआ बनारस में श्री चन्द्रप्रभ अध्ययन हेतु प्रवासरत थे।स्थानकवासी है, बेटे-बहू माता-पिता को भगवान मानकर सेवा करने लगे हैं। जैन परम्परा के वरिष्ठ एवं प्रभावी संत हुकुमचंद जी महाराज का श्री चन्द्रप्रभ ने अपने प्रवचनों में धर्म को नया स्वरूप दिया है। बनारस में आगमन हुआ। पार्श्वनाथ शोध संस्थान में सामूहिक प्रवचन उन्होंने धर्म को जीवन से जोड़ने की सीख दी है। वे क्रियागत धर्म की का कार्यक्रम रखा गया। श्री चन्द्रप्रभ ने लगभग पौन घंटे का प्रवचन बजाय मानवीय धर्म में अधिक आस्था रखते हैं। वे धर्म के अंतर्गत धर्म दिया। जब हुकुमचंद जी महाराज ने उनका प्रवचन सुना तो वे गद्गद का युगीन स्वरूप, नवकार-गायत्री मंत्र का रहस्य, तपस्या, प्रभुभक्ति, हो उठे। उन्होंने धर्मसभा में कहा, "मैंने प्रवचन तो कइयों के सुने, पर सर्वधर्मसद्भाव, जीने की आध्यात्मिक शैली से जुड़े विषयों पर अंतरात्मा को जो आनंद संत श्री चन्द्रप्रभ को सुनकर मिला वह कभी न मार्गदर्शन देते हैं। इन प्रवचनों के प्रभाव से व्यक्ति की धार्मिक मिला। मैंने ऐसा हृदय को छूने वाला प्रवचन पहले कभी नहीं सुना। ये संकीर्णता की दृष्टि विराट हुई है। लोग जीवनगत धर्म को जीने लगे हैं। वास्तव में समाज के सूर्य हैं। मैं इन्हें प्रवचन-प्रभाकर के गौरव से उनके प्रभाव से लाखों जैनी गायत्री मंत्र का और लाखों हिन्दू नवकार अंलकृत करता हूँ।" मंत्र का जाप करने लगे हैं जो कि अपने आप में धार्मिक एकता की श्री चन्द्रप्रभ की देश के लगभग हर बड़े शहरों के मैदानों में विशाल मिसाल है। एवं प्रभावशाली प्रवचनमालाएँ हुई हैं जिसमें चैन्नई के साहूकार पेठ, श्री चन्द्रप्रभ अपने प्रवचनों में समाज-निर्माण का भी कार्य करते कलकत्ता के कलाकार स्ट्रीट, पूना के शुक्रवार पेठ, बैंगलोर के हैं। वे सामाजिक उत्थान और सामाजिक दूरियों को कम करने का चिकपैठ, इंदौर के दशहरा मैदान, नीमच का दशहरा मैदान, मंदसौर के बेहतरीन मार्गदर्शन देते हैं। उनके प्रवचनों से सामाजिक समरसता का संजय गांधी उद्यान, जयपुर के राजमंदिर थियेटर व दशहरा मैदान, अद्भुत वातावरण बनता है। यही वे पहले जैन संत हैं जिन्होंने जोधपुर के गांधी मैदान, भीलवाड़ा के आजाद चौक, उदयपुर के टाउन भगवतगीता पर जोधपुर के गीताभवन में अठारह दिन तक लगातार हॉल मैदान, पाली के अणुव्रत नगर मैदान, चित्तौड़गढ़ के गोरा बादल प्रवचन दिए। वे जितना महावीर पर प्रेम से बोलते हैं, उतना ही राम, स्टेडियम, निम्बाहेड़ा के कृषि मण्डी मैदान, अजमेर के बर्फखाना कृष्ण, मोहम्मद, जीसस एवं नानक पर बोलते हैं। इसी का परिणाम है मैदान में हुई प्रवचनमालाएँ मुख्य हैं। कि उनके प्रवचनों में छत्तीस कौम के जैन, हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, श्री चन्द्रप्रभ जीवन, व्यक्तित्व, कॅरियर, स्वास्थ्य, धर्म. परिवार. ईसाई लोग आते हैं। समाज, राष्ट्र, विश्व, अध्यात्म से जुड़े हर विषय पर, हर पहलू पर श्री चन्द्रप्रभ राष्ट्र-भक्त हैं। वे राष्ट्र-निर्माण हेतु प्रतिबद्ध हैं। बोलते हैं और लीक से हटकर विचार रखते हैं। उनके प्रवचनों में उन्होंने भारतीय संस्कृति के नैतिक मूल्यों को आधुनिक ढंग से पूरे बीस-बीस, पच्चीस-पच्चीस हजार तक की जनसमुदाय की उपस्थिति विश्व में फैलाया है। वे राष्ट्र-निर्माण के अंतर्गत राष्ट्रीय गौरव, भारत देखी गई है। जिसमें युवावर्ग की संख्या सबसे अधिक होती है। वे की समस्याएँ एवं समाधान, नैतिक मूल्य, राजनीतिक आरक्षण, जीवन-निर्माण के अंतर्गत जीने की कला, सकारात्मक सोच, प्रभावी दुर्व्यसन, युवा वर्ग के दायित्व, विश्वशांति, अणुबम-अणुव्रत जैसे व्यवहार, मानसिक विकास, बोलने की कला जैसे विषयों पर प्रवचन विषयों पर क्रांतिकारी प्रवचन देते हैं। उनके सान्निध्य में जोधपुर के देते हैं। ये प्रवचन जीवन की डिस्चार्ज बेटरी को चार्ज करने का काम गाँधी मैदान में, भीलवाड़ा के आजाद चौक में, नीमच के दशहरा मैदान करते हैं। व्यक्ति हँसी और खुशी से सरोबार हो जाता है। वे व्यक्तित्व में विराट सर्वधर्म सम्मेलन भी सम्पन्न हुए हैं, जिसमें सभी धर्मों के संबोधि टाइम्स-11 Jain Education International For Personal & Private Use Only aw.jainelibrary.org


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