Book Title: Salaka Purush Part 1
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 7
________________ किया और ९.८.०३ को कुन्दकुन्द कहान तीर्थसुरक्षा ट्रस्ट द्वारा संचालित शिविर के अवसर पर जयपुर में | 'हरिवंश कथा' का विमोचन भी हो गया। ला. मैं पुनः हृदय बाल्व में थक्का जम जाने से मरणासन्न की स्थिति में पहुँच गया; परन्तु होनहार तो कुछ और ही | थी, अतः पुत्र शुद्धात्मप्रकाश और परिवार के पुनः पुनः किए अथक प्रयासों से और जिनवाणी से प्राप्त मेरे | मनोबल से मुझे पुनः जीवनदान मिल गया। | मैंने पुनः संकल्प किया कि यदि शरीर ने साथ दिया तो मैं महापुराण को भी हरिवंश पुराण से भी अधिक उपयोगी बनाने का प्रयास करूँगा। वस्तुतः मैं तो निमित्तमात्र था, काम तो अपनी तत्समय की योग्यता से जैसा/जो होना था, हुआ है। अब मेरी भावना है कि पाठक इसे अधिक से अधिक पढ़ें और लाभान्वित हों। विश्व के समस्त दर्शनों में जैनदर्शन ही एक ऐसा दर्शन है, जो कहता है कि प्रत्येक आत्मा स्वभाव से तो स्वयं परमात्मा है ही। यदि स्वयं को जाने, पहचानें और स्वयं में जम जाये, रम जाये तो पर्याय में भी परमात्मा बन सकता है। हमारे तीर्थंकर शलाका पुरुष अपने पिछले भवों में हमारे-तुम्हारे जैसे ही पामर पुरुष थे, अनादिकाल से चतुर्गति में परिभ्रमण करते थे। उन्होंने काललब्धि आने पर स्वयं को जाना, पहचाना, स्वयं का अनुभव किया स्वयं में समा गये तो अन्तर्मुहूर्त में ही सर्वज्ञता प्राप्त कर परमात्मा बन गये। तीर्थंकर परमात्माओं के गर्भ, जन्म, तप, केवलज्ञान और मोक्ष कल्याणक के रूप में सम्पन्न हुए ये पंचकल्याणक आत्मा से परमात्मा बनने की प्रक्रिया हैं। भगवान ऋषभदेव ने परमात्मा बनने का कार्य छह भव पूर्व भोगभूमि के आर्य के भव में किया था और यही कार्य भगवान महावीर ने दस भव पूर्व शेर की पर्याय में किया था। भगवान पार्श्वनाथ ने यही काम आठ भव पूर्व हाथी के भव में किया था। इन बातों से यह स्पष्ट है कि जैनदर्शन के अनुसार न केवल मनुष्य; बल्कि पशु भी परमात्मा बन सकते हैं तो हम क्यों नहीं बन सकते ? अतः हमें इस दिशा में प्रयास करना चाहिए। यदि पाठक || प्रथमानुयोग की इस विषयवस्तु से लाभान्वित हुए तो मैं अपना श्रम सार्थक समझूगा। ॐ नमः । - पण्डित रतनचन्द भारिल्ल |O ल +E CE

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