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चन्द्रप्रभ ने सोच और सफलता को अनुभवों की आँच में तपाकर ऐसी कसौटी पर कसा है कि उनमें विफलता के लिए कोई स्थान ही नहीं रहा। ध्यान-योगचिन्तन के स्वामी श्री चन्द्रप्रभ ने सकारात्मक सोच के अनगिनत अनुभव पाए हैं
और इन अनुभवों को वे प्रदान कर रहे हैं हमारी युवा पीढ़ी को, जिसे तलाश है, सही रास्ते की।
धर्म को केवल किताबों तक सीमित न रखकर पूज्यवर ने महलों में रहने वालों तक के लिए नहीं, अपितु झोंपड़ी में आश्रय पाने वालों के लिए भी सरल
और सहज बना दिया है। वे कहते हैं - ‘क्या हुआ मुरझा गया जो एक फूल, फूल ये सभी एक-एक कर मुरझा जाएँगे, यह तो प्रकृति का नियम है, नए आयेंगे, पुराने जायेंगे।' तो आप भी अब तक अपने भीतर छिपाकर रखे नकारात्मक विचारों को निकाल बाहर करें, भीतर प्रवेश करने में सकारात्मक भावों को। व्यग्रता से नहीं समग्रता से विचार करते हुए आगे बढ़ें - लक्ष्य की ओर, आत्मविश्वास के साथ।
प्रस्तुत पुस्तक पूज्यश्री की जीवन-दृष्टि पर आधारित प्रवचनों का एक सूचीबद्ध रूप है। ‘सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए' मात्र एक पुस्तक नहीं है। इसके प्रत्येक पृष्ठ की प्रत्येक पंक्ति और उसके एक-एक अक्षर करोड़ों के हैं। जिसके भीतर प्यास है, आगे बढ़ने की चाह है, उत्कंठा है, उसके लिए तो यह ऐसा खजाना है जो कौड़ियों में सहज ही उपलब्ध हो रहा है। आइए, शुरू करें यात्रा उस मंजिल की जो सकारात्मक सोच के मील के पत्थरों से होकर गुजरती है।
श्रीचरणों में अहोभाव-सहित प्रणाम।
- मीरा
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