Book Title: Sachitra Sushil Kalyan Mandir Stotra
Author(s): Sushilmuni, Gunottamsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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कल्याण - मन्दिरमुदारमवद्यभेदि, भीताभयप्रदमनिन्दितमध्रि - पद्मम्। संसार - सागर - निमज्जदशेष - जन्तु,
पोतायमानमभिनम्य जिनेश्वरस्य।।१।। कल्याण के मन्दिर, उदार, पापों का नाश करने वाले, दुःखों के भय से आकुल प्राणियों को अभय प्रदान करने वाले, सर्वत्र प्रशंसनीय, संसाररूपी सागर में डूबते हुए सभी प्राणियों के लिये जहाज के समान आधारभूत, श्री जिनेश्वरदेव के चरण-कमलों को भलीभाँति नमस्कार करके.........।
કલ્યાણના મંદિર, ઉદાર, પાપોનો નાશ કરનાર, દુ:ખોના ભયથી આકુળ પ્રાણીઓને અભય પ્રદાન કરનાર, સર્વત્ર પ્રસંશનીય, સંસારરૂપી સાગરમાં ડૂબતા સર્વ પ્રાણીઓ માટે જહાજ સમાન આધારભૂત, શ્રી हिनेश्वरविनायरस-भसमां नमस्कार रीने......!
After sincerely bowing at the lotus-feet of Shri Jineshvara Dev (the god of conquerors), the temple of beatitude, kind, extirpator of sins, provider of solace to beings tormented by fear, ever praiseworthy, shiplike savior of all beings drowning in the ocean of mundane existence (cycles of rebirth)...
| चित्र-परिचय
प्रभु पार्श्वनाथ के चरण कमलों में नमस्कार मात्र से दुःख और भय से मुक्ति मिलती है । संसार रूपी भव सागर में डूबते भक्तों के जहाज रूपी आलम्बन जिनेश्वर देव !
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