Book Title: Prathamanuyoga Dipika
Author(s): Vijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti

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Page 16
________________ aooooooo00000000000000000-50-500-A EPARSSETBालिमाTANIRODIGRSSSSMEANINNAIMIMonomen हथनी का दूसरा नाम क्या है ? दोनों प्रश्नों का एक ही उत्तर दीजिये। भात बोली, "करेणुका" अर्थात् 'करे' हाथ में "अणुका" सूक्ष्म रेखाएँ प्रशंसनीय होती हैं और हथिनी का नाम "करेणका" भी है। अन्य देवियाँ बोली, हे पिकवधणी माँ ! सीधे, ऊँचे और छाया सहित वृक्षों के समूह को क्या कहते हैं ? प्रापका सबसे मनोहर अङ्ग कौन सा है ? दोनों प्रश्नों का एक उत्तर चाहती हैं हम । माता तत्काल बोली, "सालकानन' । सालवृक्षों के बन को "मालकानन" कहते हैं और सं अलक+पानन अर्थात् केशपाश सहित मुख मेरे अङ्गों में सबसे गर्म में जिन भगबान स्कस थे? भगवान अपने सातिशय पुण्यानुसार गर्भ में सीधे ही रहते हैं । यहाँ मल-मूत्र रक्तादि अपवित्र वस्तुओं से अलिप्त रहते हैं। अंग संकोचनजन्य पीडा उन्हें नहीं होती। धर्माभ्युदय में बड़ा सुम्बर भावपूर्ण विवेचन किया है "थे जिम भगवान गर्भावास में रहकर भी मल से प्रकलंक थे, मति श्रुत और अवधि । शामय के धारक थे। उन्नत उवयाचल के गहन लिमिर में छिपा हम्रा भी सिमरश्मि अर्थात सूर्य क्या कभी अपने तेज को छोड़ सकता है ? ६.६। । मनोहर है । माता की दूरदशिता और सूक्ष्म विचार शक्ति से देवियां भी पराजय मानतीं । म केबल राजा-रानी ही हर्षोत्फुल्ल थे अपितु समस्त नगरी (अयोध्या) साकेता ही परमानन्द में निमग्न थी । लगभम १५ मास से दिक्य रत्नों की वर्षा से भूमि रस्नगर्भा' नाम से अलंकृत हो गई । यत्र-तत्र सर्वत्र याचकों का अभाव सा हो गया । सृष्टि का प्रथम कर्ता उत्पन्न होने जा रहा है तो भला धरा क्यों न अपने को धन्य समझती । अनेकों प्रकार के फल-फल, धान्य प्रादि से हरी-भरी हो आनन्द नर्तन करने लगी । परन्तु भोली अनभिज्ञ जनता उसके अभिप्राय को न जानने से उस पानन्दोपभोग में सहयोगी नहीं हो पा रही थी। प्रसवकाल.. ...क्षण-क्षण पल-पल घड़ियाँ बीतने लगी। दिन के बाद रात्रि और पुन: सवेरा, इसी क्रमश: पक्ष और मास आने-जाने लगे ।

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