Book Title: Prathamanuyoga Dipika
Author(s): Vijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti

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Page 15
________________ माता की सेवा में रत रहती । कोई तलवार लिए रक्षा में तत्पर रहती । अभिप्राय यह है कि देवियां अहर्निश माता की सेवा में रत रहती । माता को जो कुछ रुचता वही वही कार्य करती, वेही पदार्थ देती एवं उसी प्रकार आचरण करतीं। माता भी पुत्राणा से परम आनन्दानुभव करती । वनक्रीड़ा, जलकेलि, उद्यान पर्यटन, नृत्य, गान, वाद्य, वीणावादन आदि मनोरंजक साधनों से मरुदेवी माँ का मन बहलातीं । कथा कहानी सुनाती पहेलियां पूछतों प्रश्न करतीं, उत्तर पाकर आश्चर्य चकित हो माँ की स्तुति करतीं । जिनमें गुड अर्थ है, किया और पाद गुड़ हैं, बिन्दु, मात्रा, अक्षर छूटे हुए हैं ऐसे श्लोकों से माता का मनोरंजन बढ़ाती । माता उन गृह संवियों को समझाती अक्षर मात्राओं की पूर्ति कर गर्भस्थ बालक का चमत्कार प्रकाशित करती । देवियों के माता के साथ प्रश्नोतर गर्भस्थ बालक की वृद्धि के साथ माता का विवेक, मतिज्ञान और बुद्धि उत्तरोत्तर बढ़ रही थी परन्तु उदर (पेट) नहीं बहा-त्रिवली भंग नहीं हुई । प्रमाद और शिथिलता के स्थान मे उत्साह और स्फूर्ति बढ़ गई थी। वह सतत सावधान चित्त थीं । देवियां नाना प्रश्न करती । देखिये किस प्रकार पहेलियां बुझाती है माता । हे माते ! पिंजरे में कौन रहता है ? कठोर शब्द किसका होता है ? जोवों का आधार कौन है ? स्युत अक्षर होने पर भी पढ़ने योग्य क्या है ? सभी प्रश्नों का "क" के साथ अलग-अलग शब्द जोड़कर उत्तर देती हैं। क्रमश: 'शु' लगाकर शुकः, 'का' जोडकर "काकः " 'लो' मिलाकर "लोक:" और 'ग्लो' जोडकर "श्लोकः " होता है। चारों प्रश्नों के कितने ठोस संक्षिप्त और यथार्थ उत्तर हैं। इसी प्रकार अन्यदेवियों ने पूछा, हे जगन्मात ! “धान्य में क्या छोड दिया जाता है ? घट कौन बनाता है? वृषान् अर्थात् चूहों को कौन खाता है ? Her: उत्तर आदि अक्षर को बदलते हुए बतलाइये ? माता ने प्रत्युत्पन्न बुद्धि से 'ल' शब्द को रखकर क्रमश: "पलाल" कुलाल' (कुम्भकार) और "विडाल" उत्तर दिया । अन्त का अक्षर सब में 'ल' है । इसी प्रकार के अनेकों प्रश्नोत्तरों से गर्भस्थ बालक का गौरव प्रकट होता | अनेका afari प्रच्छन्न रूप से भी माता की सेवा-सुश्रुषा करती । पुनः प्रश्न करती हे देवी! आपके किस अ की कैसी रेखाएँ प्रशंसनीय है।

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