________________
( १५ )
के रूप में नहीं । २७ लगता है, प्रश्न व्याकरण सूत्र के विषय तथा अध्ययन आदि के सम्बन्ध में बहुत प्राचीनकाल से ही कोई एक निश्चित धारणा नहीं रही है । कहीं स्थानांग आदि सूत्रों के संकलन काल में वाचना भेद से प्रश्न व्याकरण के विभिन्न रूप तो प्रचलित नहीं थे ? लगता तो ऐसा ही है ।
दिगम्बर परम्परा के धवला आदि ग्रन्थों में प्रश्न व्याकरण का विषय बताते हुए कहा है कि प्रश्न व्याकरण में आक्षेपणी, विक्षेपणी, संवेदनी और निर्वेदनी, इन चार कथाओं का वर्णन है । आक्षेपणी में छह द्रव्य और नौ तत्वों का वर्णन है । विक्षेपणी में परमत की एकान्त दृष्टियों का पहले प्रतिपादन कर अनन्तर स्वमत अर्थात् जिनधर्म की स्थापना की जाती है । संवेदनी कथा पुण्यफल की कथा है, जिसमें तोर्थंकर, गणधर, ऋषि, चक्रवर्ती, बलदेब, वासुदेव, देव एवं विद्याधरों की ऋद्धि का वर्णन है । निवेदनी में पापफल की कथा है, अतः उस में नरक, तिर्यंच, कुमानुष योनियों का एवं जन्म, जरा, मरण, व्याधि, वेदना, दरिद्रता आदि का वर्णन है ।
और यह प्रश्नव्याकरण अंग प्रश्नों के अनुसार हत, नष्ट, मुष्टि, चिन्ता, लाभ, अलाभ, सुख, दुःख, जीवित, मरण, जय, पराजय, नाम, द्रव्य, आयु और संख्या का भी निरूपण करता है । २६
२५ – ससमयपरसमयपण्णवयपत्तं यबुद्धविविहत्य भासा मासियाण, अइसयगुणउवसमणाणप्पगारआयरियभासियाण, वित्थरेण वीरमहेसी हिं विविहवित्थरभासया ।
_—समवायोंग सूत्र, १४५
२६ – अक्खेवणी विक्खेवणी संवेयणी णिव्वेयणी चेदि चउव्विहाओ कहाओ वण्ण े दि । तत्थ अक्खेवणी णाम छद्दव्व णव पयत्थाण सरूवं दिगंतर - समयांतर - निराकरण किती परुवेदि ।
fardaणी णाम परसमएण ससमयं दूसंती पच्छा दिगंतरसुद्धि करेंती ससमयं थावंती छद्दव्व णवपयत्थे परूवेदि ।
संवेणी णाम पुण्णफलसंकहा । काणि पुण्णफलाणि ? तित्थयर - गणहर रिसि-चक्कवट्टि -बलदेव- वासुदेव सुर - विज्जाहररिद्धीओ ।
णिव्वेयणी णाम पावफलसंकहा । काणि पावफलाणि ? णिरय - तिरियकुमाण सजोणीसु जाइ-जरा-मरण वाहि वेयणा दालिद्दादीणि । संसारसरीरभोगे वेरगुप्पाणी णिव्वेयणी नाम 1
पण्हादो हद नट्ठ मुट्ठि- चिता-लाहालाह- सुह- दुक्ख जीविय-मरण-जयपराजय - णाम- दव्वायु- संखं च परूवेदि ।
- धवला, भाग १ पृ० १०७-८