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( १४ ) . हजार मानती है। वर्तमान में प्रचलित प्रश्न व्याकरण की श्लोक संख्या १२५६ के लगभग है । एक श्लोक ३२ अक्षर का माना जाता है।
समवायांग और नन्दी सूत्र में प्रश्न व्याकरण के ४५ अध्ययन बतलाए हैं।२१ अनेक संख्यक श्लोकों एवं नियुक्तियों आदि का भी उल्लेख है ।२२ इसके विपरीत स्थानांग सूत्र में प्रश्न व्याकरण सूत्र के केवल दश अध्ययनों का ही उल्लेख हैउपमा, संख्या, ऋषिभाषित, आचार्य भाषित, महावीरभाषित, क्षोमक प्रश्न, कोमल प्रश्न, अद्दाग प्रश्न, अंगुष्ठ प्रश्न और बाहु प्रश्न ।२3
वर्तमान में उपलब्ध प्रश्नव्याकरण में उक्त दश अध्ययनों में का एक भी अध्ययन नहीं है। नन्दी आदि सूत्रों में भी जहाँ प्रश्नव्याकरण की चर्चा है, वहां अंगुष्ठ प्रश्न तथा बाहु प्रश्न आदि का तो उल्लेख है, किन्तु स्थानांग में निर्दिष्ट उपमा, संख्या, ऋषिभाषित आदि का कोई उल्लेख नहीं है ।२४ हाँ, समवायांग में प्रत्येकबुद्धभाषित, आचार्य भाषित और महावीरभाषित का एक संक्षिप्त सा उल्लेख अवश्य मिलता है, पर वह भी विषय के रूप में है, किसी स्वतन्त्र अध्ययन
२० - पण्हवायरणं णाम अंग तेणउदिलक्ख-सोलससहस्सपदेहि ।
-धवला, भाग १, पृ० १०४ २१- (क) पणयालीसं अज्झयणा, पणयालीसं उद्देसणकाला, पणयालीसं समुन्द्रेसणकाला।
-नन्दी सूत्र (ख) पणयालोसं उद्देसणकाला, पणयालीसं समुन्देसणकाला।
—समवायांग सूत्र, १४५ (ग) यद्यपोहाध्ययनानां दशत्वाद् दर्शवोद्देशनकाला भवन्ति तथाऽपि वाचनान्तरापेक्षया पञ्चचत्वारिंशदिति संभाव्यते ।
-समवायांगवृत्ति २२-... संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ...।
-नन्दी सूत्र २३-- पहावागरणदसाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहां-उवमा, सखा, इसिभासियाई,
महावीरभासियाई, खोमगपसिणाई, कोमलपसिणाई, अंगुठपसिणाई, बाहुपसिणाई।
-समवायांग, सूत्र १४५ २४-प्रश्नव्याकरणदशा इहोक्तरूपा न, दृश्यमाना तु पञ्चाश्रव पञ्चसंवरात्मिका ।
-स्थानांग—अभयदेवीया वृत्ति, १० स्थान