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( १२ ) 'पण्हावागरणाई" के रूप में बहुवचन का प्रयोग है, जिसका संस्कृत रूप 'प्रश्नव्याकरणानि' होता है। वर्तमान में उपलब्ध प्रश्न व्याकरण सूत्र के उपसंहार में एक वचन का ही प्रयोग है-'पण्हावागरणे ।' तत्त्वार्थस्वोपज्ञभाष्य में भी 'प्रश्नव्याकरणम्' इस प्रकार एकवचनान्त का ही प्रयोग है । दिगम्बर परम्परा के धवला तथा राजवातिक आदि ग्रन्थों में भी एकवचनान्त 'पण्हवायरणं' 'प्रश्न व्याकरणम्' प्रयोग ही प्रचलित है। 'स्थान' अंग सूत्र के दशम स्थान में प्रश्न व्याकरण का नाम 'पण्हावागरणदसा' बतलाया है, जिसका संस्कृत रूप टीकाकार आचार्य अभय देव ने ' 'प्रश्नव्याकरणदशा' किया है । परन्तु यह नाम अन्यत्र अधिक प्रचलित नहीं हो पाया।
दिगम्बर परम्परा के धवला आदि में 'पण्हवायरणं' नाम है, जब कि श्वेताम्बर परम्परा के समवायांग आदि में 'पण्हावागरणाइ” है। 'पण्ह' के लिए 'पण्हा' के रूप में दीर्घ आकारान्त प्रयोग क्यों किया गया, कुछ स्पष्ट नहीं होता। संस्कृत टीकाओं तथा अन्य संस्कृत ग्रन्थों में संस्कृत रूप 'प्रश्नव्याकरण' ही मिलता है। हाँ समवायांग वृत्ति में आचार्य अभय देव ने 'नाया धम्मकहा' का संस्कृत रूप 'ज्ञातधर्मकथा' न बनाकर 'ज्ञाताधर्मकथा' बनाया है और 'ज्ञाता' की आकारान्तता के लिए तर्क दिया है कि संज्ञा शब्द होने से दीर्घत्व है—'ज्ञाता धर्मकथा दीर्घत्वं संज्ञात्वाद ।' परन्तु अपने उक्त तर्क के आधार पर 'पण्हावागरणाई' का 'प्रश्ना व्याकरणानि' न लिखकर 'प्रश्नव्याकरणानि' रूप ही लिखा है । ऐसा क्यों है, यह विचारणीय है । प्राकृत पर अपभ्रंश की छाया ही परिलक्षित होती है ।
प्रश्न व्याकरण का अर्थ है—प्रश्नों का व्याकरण अर्थात् निर्वचन, उत्तर एवं निर्णय । यहाँ नामान्तर्गत 'प्रश्न' शब्द सामान्य प्रश्न के अर्थ में नहीं है। प्राचीन लुप्त प्रश्न व्याकरण की जो दर्पण प्रश्न, अंगुष्ठ प्रश्न, बाहु प्रश्न आदि (दर्पण, जल, वस्त्र, अंगूठे का नख, तलवार आदि में मन्त्र बल से दैवी शक्ति का अवतरण कर भविष्य का ज्ञान करना आदि) से सम्बन्धित विषयचर्चा नन्दी सूत्र आदि में उपलब्ध है, उसके अनुसार 'प्रश्न' शब्द मंत्रविद्या एवं निमित्त शास्त्र आदि के विषयविशेष से सम्बन्ध रखता है । अस्तु, प्राचीन परम्परा के अनुसार विचित्र विद्यातिशय अर्थात चम
१६-(क) पण्हो त्ति पुच्छा, पडिवयणं वागरणं प्रत्युत्तरमित्यर्थः । .
-नन्दी चूणि (ख) प्रश्नः प्रतीतस्तग्निर्वचनं व्याकरणं, बहुस्वाद बहुवचनम् ।
—आचार्य हरिभद्र, नन्दीवृत्ति